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SURAT KAPDA MANDI: कपड़ा कारोबार की मजबूत कड़ी, फिलहाल संकट में खड़ी

locationसूरतPublished: Sep 19, 2020 09:11:08 pm

Submitted by:

Dinesh Bhardwaj

सूरत कपड़ा मंडी से माल लेकर निकलने वाले ट्रकों की संख्या महज 30-35 फीसदी, सरकारी नीतियों पर टिकी है आगे की उम्मीद
 

SURAT KAPDA MANDI: कपड़ा कारोबार की मजबूत कड़ी, फिलहाल संकट में खड़ी

SURAT KAPDA MANDI: कपड़ा कारोबार की मजबूत कड़ी, फिलहाल संकट में खड़ी

सूरत. सिल्कसिटी सूरत कपड़ा मंडी का कपड़ा कारोबार चेन सिस्टम आधारित है और इस चेन की एक भी कड़ी कमजोर होने पर कारोबार का पूरा सिस्टम डगमगा जाता है। सूरत का ट्रांसपोर्ट व्यवसाय भी कपड़ा उद्योग पर 70-75 फीसदी टिका है और हाल में उसकी स्थिति बेहद अच्छी नहीं है। श्राद्ध पक्ष से प्रारम्भ होने वाले ग्राहकी के पीक पीरियड में भी सूरत कपड़ा मंडी से रोजाना सौ-सवा सौ ट्रक ही माल लेकर निकल पा रहे हैं अन्यथा यह दिनों में ट्रकों की संख्या तीन सौ के पार होती थी।
कोरोना महामारी से उपजे संकटकाल में जिस तरह से कपड़ा उद्योग की हालत पतली है वैसे ही इस उद्योग से जुड़े अन्य व्यवसायों की स्थिति भी बिगड़ी हुई है। सूरत कपड़ा मंडी में पूरे साल में दो सीजन व्यापार के लिहाज से खूब अहम गिने जाते हैं और इसमें पहला सीजन मार्च के अंतिम सप्ताह से जून के पहले-दूसरे सप्ताह तक का लग्नसरा सीजन व दूसरा श्राद्ध पक्ष से दीपावली से पहले तक त्योहारी सीजन शामिल है। दोनों ही सीजन में गत वर्षों तक तीन सौ से ज्यादा ट्रकें साड़ी-ड्रेस मटीरियल्स समेत अन्य कपड़े के पार्सल लेकर रोजाना सूरत कपड़ा मंडी से अन्यत्र मंडियों के लिए निकलते थे लेकिन, कोरोना महामारी में हालात बिल्कुल बदल गए है। पहले तो लॉकडाउन के दौरान करीब तीन महीने तक ट्रांसपोर्ट ऑफिस-गोदाम बंद ही रहे और जब खुले तो निचली मंडियों में लेवाली का अभाव उन्हें भी कपड़ा व्यापारियों की तरह परेशान करके रखा है। जून से अनलॉक है लेकिन, कपड़ा कारोबार अगस्त-सितम्बर में थोड़ा-बहुत पटरी पर आया और उसके नतीजे ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में भी देखने को मिल रहे हैं।

30 से 35 फीसदी कारोबार


सीजन में सूरत कपड़ा मंडी से तीन सौ से ज्यादा ट्रक माल देशभर की मंडियों के लिए रोजाना निकलता था जो कि अभी महज सौ-सवा सौ ट्रक ही है। यह 30-35 फीसदी ट्रांसपोर्ट कारोबार भी उन ट्रांसपोर्ट्र्स कंपनियों के पास ज्यादा है जिनके पास कंपनी के वाहन व अन्य साधन-संसाधन उपलब्ध है जबकि, सूरत कपड़ा मंडी में सक्रिय कई ट्रांसपोटर््र्स ऐसे भी है जो किराए पर ट्रकों से माल ढुलाई करते हैं। ऐसे ट्रांसपोटर््र्स को श्राद्ध पक्ष के शॉर्ट पीरियड सीजन में भी दो-तीन दिन में एक-एक ट्रक माल ही मिल पाया।

कपड़ा मंडी भी फिलहाल 40 फीसदी


प्रतिदिन डेढ़ करोड़ मीटर कपड़ा तैयार करने वाली सूरत कपड़ा मंडी में भी फिलहाल व्यापारिक गतिविधि 40 फीसदी तक ही पहुंची है। जानकार बताते हैं कि मिलों में 50 फीसदी, कपड़ा बाजार में 50 फीसदी और पावरलूम्स यूनिटों में अभी 30-35 फीसदी ही श्रमिक पहुंच पाए है और श्रमिकों के अभाव में उत्पादन अटका हुआ है। ट्रांसपोर्ट व्यवसायी किरण जैन ने बताया कि सरकार ट्रेनों का संचालन जितना जल्दी और जितना ज्यादा करेगी तब ही जाकर कपड़ा उद्योग समेत अन्य उद्योगों की गतिविधियों में तेजी आएगी।

ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर एक नजर


सूरत का ट्रांसपोर्ट व्यवसाय 70-75 फीसदी कपड़ा कारोबार आधारित है और इसकी मौजूदा स्थिति दैनिक सौ-सवा सौ ट्रक माल निकासी की बनी हुई है जबकि गत वर्षों तक यह संख्या तीन सौ के पार होती थी। छोटे-बड़े और मझले ट्रांसपोर्ट व्यावसायियों की संख्या यहां पर दो सौ के करीब है और इनमें से 50-60 फीसदी छोटे व्यवसायी है। एक ट्रक में डेढ़ सौ से दो सौ पार्सल भरे जाते हैं और इस तरह से इन दिनों अंदाजित 20 हजार पार्सल रोज बाहर जा रहे हैं। एक पार्सल की औसतन लागत 25 से 30 हजार रुपए तक होती है।

सबकुछ कपड़ा उद्योग पर निर्भर


ट्रांसपोर्ट व्यावसायियों की स्थिति बेहद खराब है। कपड़ा उद्योग पर आधारित व्यवसाय में खर्चे ज्यादा और व्यापार कम वाली स्थिति अभी बनी हुई है। सरकारी नीतियों से जब कपड़ा उद्योग गति पकड़ेगा तब जाकर ही ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पुरानी रफ्तार पकड़ पाएगा।
कैलाश धूत, सचिव, सूरत टैक्सटाइल गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन

कपड़ा उद्योग में उत्पादन की जरूरत


यह सही है कि अभी कोरोना से देश के हालात ठीक नहीं है लेकिन, कपड़ा व्यवसाय में जिस तरह की डिमांड मौजूदा दौर में है वैसा उत्पादन कपड़ा उद्योग में नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह में श्रमिकों का अभाव है और उनके आने से ही यह कमी पूरी हो पाएगी।
कैलाश हाकिम, कपड़ा उद्यमी, रघुकुल मार्केट

कारोबार आधा पटरी पर आया


लम्बे समय तक कपड़ा व्यापार बंद रहने से निश्चित ही देश की अन्य मंडियों से डिमांड आई है और अब इसे 50 फीसदी पटरी पर आना कह दें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हालांकि इसका असर कपड़ा उद्योग में पूरी तरह से अक्टूबर में नवरात्र पर्व तक ही नजर आएगा।
दिलीप खूबचंदानी, आढ़तिया, सिल्क हेरीटेज मार्केट

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