डायरेक्टर जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडिज में प्रस्ताव पर आज होगी सुनवाई
SURAT KPADA MANDI: एंटी सब्सिडी ड्यूटी का प्रस्ताव, स्थानीय बुनकरों ने जताया विरोध
सूरत. सूरत कपड़ा मंडी में मात्र दस फीसद ही उपयोगी, लेकिन वेल्यू एडीशन वर्क के लिए बेहद उपयोगी फेब्रिक्स का निर्माण करने वाले विस्कॉस फिलामेंट यार्न पर एंटी सब्सिडी ड्यूटी लगाए जाने का प्रस्ताव डीजीटीआर अर्थात डायरेक्टर जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडिज के पास पहुंचा है। इस पर गुरुवार को सुनवाई होनी है, लेकिन सुनवाई से पहले ही सूरत कपड़ा मंडी के वीवर्स संगठनों समेत अन्य व्यापारिक संगठनों ने इस पर आपत्ति दर्ज करवाई है। एशिया की सबसे बड़ी सूरत कपड़ा मंडी में सर्वाधिक रूप से सिंथेटिक यार्न का उपयोग होता है और इसकी मात्रा 65 से 70 फीसदी तक है। वहीं, दूसरे नम्बर पर नॉयलान पोलिस्टर यार्न है जो कि 15 से 20 फीसदी सूरत कपड़ा मंडी में फेब्रिक्स बनाने में उपयोग लिया जाता है। तीसरे यार्न के रूप में विस्कॉस फिलामेंट यार्न है जो कि मात्र 10 से 15 प्रतिशत ही उपयोग में लिया जाता है, लेकिन विस्कॉस फिलामेंट यार्न से बेहतर गुणवत्ता की महंगी फेब्रिक्स आयटम बनती है और इनमें जॉर्जेट, ब्रासो, चिनॉन, 75 जॉर्जेट आदि शामिल है। वहीं, इस यार्न का उपयोग एम्ब्रोयडरी मशीनों के धागों के रूप में भी लिया जाता है। देशभर में प्रतिवर्ष 54 हजार टन विस्कॉस यार्न की खपत होती है और इसमें 39 हजार टन लोकल यार्न तथा 16 हजार टन आयातित यार्न रहता है। इस आयातित यार्न का 70-80 फीसदी सूरत कपड़ा मंडी में उपयोग होता है। उधर, डायरेक्टर जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडिज के पास आयातित यार्न पर 15 प्रतिशत एंटी सब्सिडी ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव पहुंचा है और उसका विरोध भी स्थानीय वीवर्स व अन्य व्यापारिक संगठनों ने दर्ज कराया है। अब इस प्रस्ताव पर गुरुवार को सुनवाई होगी। एंटी सब्सिडी ड्यूटी का विरोध जताने वाली पांडेसरा वीवर्स एसोसिएशन व फिआस्वी का कहना है कि आयातित विस्कॉस फिलामेंट यार्न पर बेसिक कस्टम ड्यूटी वैसे ही लगती है, अब इस पर 15 प्रतिशत एंटी सब्सिडी ड्यूटी और लगाई जाती है तो यह स्थानीय वीवर्स को काफी मंहगा पड़ेगा।
-स्थानीय व आयातित में बड़ा फर्क विस्कॉस फिलामेंट यार्न के स्थानीय उत्पादकों के यार्न उत्पाद के बारे में वीवर्स संगठन बताते हैं कि यह यार्न दो किलो के कोन में रहता है और इसमें गांठें रहती है, इस वजह से वीविंग व एम्ब्रोयडरी मशीन पर इसे बार-बार बदलना पड़ता है। वहीं, आयातित यार्न 4 से 6 किलो के कोन में बगैर गांठ का होता है। इस यार्न से एक्सपोर्ट ओरिएंटेड फेब्रिक्स बनता है।