scriptsurat naiws: jagat ke sabhee jeevaatma kee chaah sukh, sabhee kee sank | SURAT NEWS: ‘जगत के सभी जीवात्मा की चाह सुख, सभी की संकल्पना अलग-अलग’ | Patrika News

SURAT NEWS: ‘जगत के सभी जीवात्मा की चाह सुख, सभी की संकल्पना अलग-अलग’

locationसूरतPublished: Jan 10, 2023 09:07:26 pm

Submitted by:

Dinesh Bhardwaj

-तीन दिवसीय फाइव एलिमेंट्स साधना आज से

 

SURAT NEWS: ‘जगत के सभी जीवात्मा की चाह सुख, सभी की संकल्पना अलग-अलग’
SURAT NEWS: ‘जगत के सभी जीवात्मा की चाह सुख, सभी की संकल्पना अलग-अलग’
सूरत. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ न्यास के कोषाध्यक्ष गोविंददेवगिरी महाराज ने कहा कि इस संसार का कोई भी जीवात्मा दुख नहीं चाहता, सब सुख चाहते हैं। सुख की संकल्पना सबकी अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सभी को सुख की कामना रहती है। कोई श्मसान में सुख पा रहा है तो कोई परिवार त्याग कर, कोई संपत्ति प्राप्त कर सुख पा रहा है। सभी को सुख अखंड, असीम, स्वाधीन चाहिए। लेकिन सुख का प्रमुख स्रोत अपने भीतर ही है। हम भीतर की ओर देखते ही नहीं, सुख हमारा स्वभाव है, हमारा ध्यान उधर जाता ही नहीं। अंतर्मुखी होकर भक्ति करने की जरूरत होती है। इसके लिए सत्संग करने की आवश्यकता होती है। हमारा मन चैतन्य परमात्मा की ओर न जाकर जड़ शरीर से चिपका रहता है। इससे पूर्व शहर के वेसू स्थित रामलीला मैदान में एकल श्रीहरि वनवासी विकास ट्रस्ट द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन मंगलवार को मुख्य यजमान महेश मित्तल व मंजू मित्तल, रतनलाल दारुकावाला, अशोक टिबड़ेबाल, ललित सराफ, अंकुर बिजाका आदि ने व्यास पूजन कर महाराज से आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में समाजसेवी एवं उद्योगपति गोविंद भाई ढोलकिया भी मौजूद रहे।महाराज ने कपिल मुनि एवं माता देवहूति की कथा का वर्णन करते हुए संतों के लक्षण में बताया कि संत हमेशा सहते रहते हैं। लोगों के दुखों को देखकर द्रवित होते हैं, सबका भला चाहते हैं। किसी के लिए भी उनके अंदर दुर्भावना नहीं होती। अनन्य होकर भगवान की भक्ति करते हैं। भगवान की भक्ति भगवान के लिए करते हैं। संतों ने हमेशा भगवान से भगवान का प्रेम मांगा है। किसी भी संत का जीवन उठाकर देख लीजिए संत अपने लिए कुछ नहीं मांगते हैं। भक्ति के आड़े आने वाले संबंधों का त्याग कर देते हैं, भक्ति का त्याग नहीं करते। भगवान की मंगलमय पावन कथा जहां भी होती है, वहां सुनने के लिए चले जाते हैं, ऐसे संतों की संगत जीवन बदल देती है। इससे जीवन में भक्ति की उत्पत्ति होती है। सद्गुरु में प्रेम हो, आहार पर नियंत्रण तथा जीवन में किसी भी व्यक्ति के लिए दुर्भावना का भाव न नहीं होना चाहिए। महाराजजी ने कहा कि जिसके पीछे सभी लोग पड़े रहते हैं। वह श्रीलक्ष्मी मां हर पल हमारे श्रीहरि के चरणों की सेवा करती रहती हैं। ऐसे परमपिता परमेश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए।
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