लूम्स कारखानों में 12 घंटे की नौकरी के कारण नए युवा यहां काम करने से कतराते हैं
SURAT NEWS-कोई भी काम कर लेंगे, लेकिन सूरत नहीं जाएंगे!!!
सूरत दिवाली के बाद श्रमिकों की समस्या से जूझ रहे सूरत के कपड़ा उद्योगके लिए यह संकट आने वाले दिनों में और गहरा सकता है, क्योंकि बीस-पच्चीस साल से कपड़ा उद्योग से जुड़े श्रमिक धीरे-धीरे उम्र के कारण बाहर निकल रहे हैं और नई पीढ़ी के युवा इस उद्योग में कम जुड़ रहे हैं। सूरत में छह लाख लूम्स मशीनें, साढ़े तीन सौ डाइंग प्रोसेसिंग मिलें और एक लाख एम्ब्रॉयडरी मशीनें हैंंं। इनमें सात से आठ लाख श्रमिकों को सीधे तौर पर रोजगार मिलता है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण कपड़ा उद्योग में आई मंदी के कारण डेढ़ लाख से अधिक श्रमिक काम नहीं मिलने के कारण अपने वतन चले गए या दूसरे व्यवसाय में जुड़ गए। कपड़ा व्यवसायियों का मानना है कि लूम्स कारखानों में 12 घंटे की नौकरी के कारण नए युवा यहां काम करने से कतराते हैं। लूम्स कारखाने में 12 घंटे नौकरी करने के बजाय वह अपने वतन में पान या मोबाइल रिचार्ज करने की छोटी दुकान खोलना पसंद करते हैं। जो थोड़ा पढ़े-लिखे हैं, वह मुंबई या दिल्ली की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे में सूरत में श्रमिकों की संख्या लगातार घटती जा रही है।
डिप्टी सीएम अजीत पवार का ट्वीट- चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, ऑल इज वेल कपड़ा उद्यमियों का मानना है कि नए श्रमिकों के नहीं आने के पीछे एक और बड़ा कारण केंद्र सरकार की मनरेगा योजना है। इस योजना में रोजगार और न्यूनतम आय की गारंटी होने से बहुत सारे लोग गांव में रहकर नौकरी करते हैं और अपनी खेतीबाड़ी भी देख लेते हैं। इस कारण वह सूरत नहीं आना चाहते। बदलती परिस्थितियों के साथ कपड़ा उद्यमी भी नई टैक्नोलॉजी की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने वाटरजेट, रेपियर आदि मशीनें इन्स्टॉल करना शुरू कर दिया है, लेकिन यह अभी सूरत के कपड़ा उद्योग का दसवां हिस्सा भी नहीं है।
इसके अलावा दूसरी मुसीबत यह भी है कि नई टैक्नोलॉजी वाली मशीनें चलाने के लिए कुशल श्रमिक चाहिए, जो सूरत में कम हैं। इनके लिए यहां प्रशिक्षण केंद्र, शिविर आदि की व्यवस्था करनी होगी।
आतंकियों के खिलाफ सरकार का बड़ा कदम, कश्मीर में तैनात की जल-थल-वायु सेना की स्पेशल फोर्सेज यदि सूरत के कपड़ा उद्योग को सिल्कसिटी का दर्जा बनाए रखना है और विकास करना है तो नई टैक्नोलॉजी ही विकल्प है। फैडरेशन ऑफ इंडियन आर्ट सिल्क वीविंग इंडस्ट्री के चेयरमैन भरत गांधी ने बताया कि श्रमिकों की घटती संख्या ने मुसीबत खड़ी कर दी है। इसका सीधा विकल्प टैक्नोलॉजी है। कपड़ा उद्यमियों को नई टैक्नोलॉजी की ओर जाना पड़ेगा।