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SURAT NEWS: ‘भगवान के मंदिर की झाड़ू भी चैतन्य, जड़ता हमारी बुद्धि में’

locationसूरतPublished: Jan 17, 2023 10:10:55 am

Submitted by:

Dinesh Bhardwaj

-भागवत कथा की पूर्णाहुति आज

SURAT NEWS: ‘भगवान के मंदिर की झाड़ू भी चैतन्य, जड़ता हमारी बुद्धि में’
SURAT NEWS: ‘भगवान के मंदिर की झाड़ू भी चैतन्य, जड़ता हमारी बुद्धि में’
सूरत. मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदास महाराज ने कथा में बताया कि जगत में कोई भी पदार्थ अचेतन नहीं है। प्रत्येक पदार्थ में चेतना होता है। भगवान के सभी पात्र में चेतना होती है, यही कारण है कि उन्हें दूर नहीं रखते। भगवान के मंदिर की झाड़ू भी चैतन्य है, जड़ता हमारी बुद्धि में है। चेतन जीव भी भगवान का अंश है। भगवान जिसे अपनाते हैं तो उसे पूर्ण प्रेमी बनाकर छोड़ते हैं। महाराज श्रीजडख़ोर गौधाम गौशाला सेवार्थ गीतादेवी गजानंद कंसल परिवार की ओर से सिटीलाइट स्थित श्रीसुरभिधाम में आयोजित श्रीमदद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ में सोमवार को बोल रहे थे।
कृष्ण लीला के प्रसंग में महाराज ने बताया कि बालकृष्ण का दर्शन करने गोपियां बार-बार नंदलाला के घर जाती हैं। भगवान ने बाल लीला के दौरान घंटा से संवाद कर उनकी आवाज को बंद करा दिया था। बाद में छीकें फूटने के बाद भगवान के स्नान, दुग्धाभिषेक और भोग एक साथ होने से घंटा भी प्रेम में मगन होकर बजने लगा, जिससे सभी गोपियां एकत्रित हो गई। सनातन धर्म में माताओं के मर्यादा में रहने की परंपरा प्राचीन है। माताएं इतनी मर्यादित रहती थी कि सूर्य भी ना देख सके। इसका मतलब यह नहीं कि माताएं बाहर नहीं जाती थी, लेकिन अपने अधिक से अधिक शरीर के भाग को ढककर बाहर जाती थी। पुत्र यदि सुपुत्र है तो एक कुल को तारता है, जबकि कन्याएं संस्कारी होंगी तो दो कुलों को तार देती हैं। महाराज ने दांपत्य जीवन की मधुरता में स्त्री और पुरुष दोनों का पूरा सहयोग बताया। उन्होंने बताया कि जग में नारियों का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां तक कि शास्त्रों में नारी को गृहलक्ष्मी, ब्रह्मविद्या ,रिद्धि-सिद्धि, कामधेनु, श्रद्धा, पवित्रता आदि कहा गया है। नारी के साथ जुड़ा होने से ही पुरूष का महत्व है। नारी हर रूप में आदर करने योग्य है। नारी माता के रूप में गौरव मयी जननी है। पत्नी के रूप में सहभागी है, बहन के रूप में भाई के मस्तक पर तिलक करके गौरवान्वित करती है। पुत्री के रूप में घर की शोभा है, नारी हर रूप में आदर करने योग्य है। महाराज ने वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि विवाह से पूर्व युवक-युवती का मिलन प्राचीन नहीं है। वर्तमान परिस्थिति में सतीत्व एवं पतिव्रता की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैदिक पाणिग्रहण संस्कार के समय अंतरपट कराई जाती थी, ताकि विवाह के समय युवती का शरीर कोई देख ना सके। नारी देह दर्शन पुत्री, बहन एवं मां के भाव से करना चाहिए। कथा में महाराज ने भगवान कृष्ण की अनेक बाल लीलाओं का वर्णन किया। आयोजक समिति के मीडिया प्रभारी सज्जन महर्षि ने बताया कि इस मौके पर रामरतन भूतड़ा, रतनलाल दारूका, रामनारायण चांडक, प्रेम राठी, चंद्रप्रकाश पंसारी, प्रदीप अग्रवाल, विनय अग्रवाल, नारायण सुल्तानिया, राजकुमार सराफ, सुनील गुप्ता, विजयकुमार अग्रवाल, अरुण अग्रवाल, विमल पोद्दार आदि मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन महेश शर्मा ने किया। कथा की पूर्णाहुति मंगलवार को होगी। कथा अपरान्ह 3 बजे से सायं 6 बजे तक होगा।

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