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SURAT SCHOOL : स्कूल की मान्यता के लिए होती है तरह-तरह की सेटिंग

locationसूरतPublished: Jul 05, 2019 09:16:03 pm

अभियान : – , कई स्कूलों के मैदान दो से पांच किमी दूर

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SURAT SCHOOL : स्कूल की मान्यता के लिए होती है तरह-तरह की सेटिंग

सूरत.

दुकानों में चल रहे स्कूलों को बढ़ावा शिक्षा विभाग की ओर से ही मिल रहा है। स्कूल की मान्यता के लिए तरह-तरह की सेटिंग होती है। स्कूल किराए के मैैदान दिखा कर मान्यता हासिल कर रहे हैं। मैदान का भाड़ा-करार प्रमाण पत्रों में शामिल कर आसानी से मान्यता मिल जाती है। दुकानों में चलने वाले कई स्कूलों के मैदान दो से पांच किमी दूर हैं।
स्कूल की मान्यता के लिए जरूरी प्रमाण पत्रों को लेकर अधिकारियों की ओर से ही तोड़ बताया जाता है। इसलिए कोई भी किसी भी कोने में स्कूल खोल लेता है। शहर में कई स्कूल दुकानों में चल रहे हैं। पूरे प्रमाण पत्र नहीं होने के बावजूद इन्हें मान्यता दे दी गई। अधिकारियों की ओर से सेटिंग कर मान्यता दिए जाने को लेकर जब जांच की बात आती है तो सामान्य नोटिस भिजवा कर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। स्कूल के लिए सबसे जरूरी मैदान है। बिना मैदान वाले स्कूलों को मान्यता नहीं मिलती। अधिकारियों ने इसका तोड़ किराए के मैदान के रूप में निकाला। दुकानों में चलने वाले कई स्कूलों ने किराए का मैदान दिखा कर मान्यता हासिल कर ली।
स्कूल से सबसे पहले मैदान का क्षेत्रफल और उसकी फोटो मांगी जाती है। दुकानों में स्कूल चलाने वालों ने अपने विस्तार में किराए पर मैदान ले रखे हैं। इस मैदान के भाड़ा-करार को प्रमाण पत्रों में जोड़ कर मान्यता हासिल की गई। मैदान स्कूल से दो से पांच किमी दूर है। यहां साल में किसी तरह का खेल आयोजन नहीं होता। सिर्फ मान्यता हासिल करने के लिए दिखावे का मैदान दस्तावेजों पर दिखाया जा रहा है। ऐसे स्कूल संचालकों का कहना है कि उनके पास किराए का मैदान है और वह स्कूल से थोड़ी दूरी पर है। इसे दिखा कर उन्हें मान्यता मिली है। संचालकों का कहना है कि मान्यता के लिए भाड़े का मैदान चल जाता है। जो कमियां होती हैं, उनके लिए शिक्षा विभाग की ओर से एफिडेविट मांगा जाता है। एफिडेविट की शर्तों का पालन हुआ है या नहीं, यह बाद में कोई देखने नहीं आता।

अयोग्य शिक्षकों से चला रहे हैं काम
दुकानों में चलने वाले स्कूलों के पास योग्य शिक्षक भी नहीं हंै। मान्यता देने से पहले टीम जांच के लिए स्कूल आती है। योग्य शिक्षक नहीं होने पर उन्हें जल्द नियुक्त करने का निर्देश दिया जाता है। संचालक साल में एक बार शिक्षकों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी करते हैं। यह विज्ञापन दिखावे का होता है। योग्य शिक्षकों को ज्यादा वेतन देना पड़ता है, इसलिए नियुक्ति कभी नहीं होती। जांच होने पर संचालक बताते हैं कि उन्होंने योग्य शिक्षकों के लिए विज्ञापन दिया और साक्षात्कार का भी आयोजन किया, लेकिन योग्य शिक्षक नहीं मिले, इसलिए नियुक्ति नहीं की।

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