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वस्त्र व्यापार था थमा, व्यापार का जज्बा नहीं

locationसूरतPublished: Jun 03, 2020 09:27:11 pm

Submitted by:

Dinesh Bhardwaj

साड़ी-ड्रेस उत्पादक उद्यमियों ने लॉकडाउन में यूं ही नहीं बैठे रहे, होस्पीकेयर किट के निर्माण में उतर गए
 

वस्त्र व्यापार था थमा, व्यापार का जज्बा नहीं

वस्त्र व्यापार था थमा, व्यापार का जज्बा नहीं

सूरत. जहां चाह-वहां राह…सूरत महानगर में उद्यमशीलता कूट-कूटकर भरी हुई है। आपदा यहां सदैव अवसर के रूप में तब्दील होकर आती रही है। वस्त्र कारोबार में दुनियाभर में डंका बजाने वाले कपड़ा उद्यमी जब-जब भी उन्हें व्यापारिक स्तर पर अथवा प्राकृतिक स्तर पर चुनौती मिली, कभी पीछे नहीं हटे बल्कि चुनौतीकाल में वे आगे ही बढ़े हैं। फिर वह 1994 में प्लेग महामारी रही हो या 26 जनवरी 2001 का भूकम्प और तो और अगस्त 2006 की विनाशकारी बाढ़ भी सूरत की जीवटता और दृढ़ मनोबल का कुछ नहीं बिगाड़ पाई। इन सब दौर का इतिहास उठाकर देखेंगे तो पता चल जाएगा कि प्रत्येक आपदाकाल के बाद सूरत के कपड़ा कारोबार ने कुछ नए संकल्प के साथ नई ऊंचाई को ही छूआ है। ऐसा ही कुछ माजरा अब कोरोना संक्रमण के बीच सूरत में बना हुआ है। ढाई माह पहले मार्च के उत्तरार्ध से ही सूरत महानगर का कपड़ा कारोबार पूरी तरह से थम गया था और पहला लॉकडाउन तो इस उधेड़बुन में ही निकल गया कि आगे कैसे-क्या होगा? लेकिन रुकने में यकीन नहीं करने वाले कपड़ा उद्यमियों ने भी ठान लिया कि कोरोना रुके या ना रुके अब हमें तो चलते ही जाना है, क्योंकि उन्हें कारोबार और कारोबार के साथ-साथ जुड़े कई उन परिवारों की भी फिक्र थी जो हुनरमंद तो थे पर लाचारी की वजह से हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। जैसे ही जरूरत ने पंख फैलाए तो उन हुनरमंद कारीगरों को भी मशीनों पर अपने कौशल के जरिए उडऩे का मौका इस कोरोना नामक आपदा में मिल गया।

पहले तो समझा, फिर बनाना शुरू


सूरत के जाने-माने लक्ष्मीपति साड़ीज समूह ने कोरोना काल में सेवा के साथ-साथ व्यापार के एक नए विकल्प के रूप में होस्पीकेयर के पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट किट समेत अन्य आवश्यक उत्पाद को बना लिया है। समूह के निदेशक संजय सरावगी बताते हैं कि 25 मार्च से लॉकडाउन-1.0 लागू होने के बाद कुछ समय तो ऐसे ही बीतने दिया, लेकिन यह मन को पसंद नहीं आया और तब स्थानीय प्रशासन के माध्यम से पीपीई किट व अस्पताल में उपयोगी अन्य उत्पाद के बारे में गंभीरता से जाना। सबकुछ समझने के बाद कंपनी की रिसर्च एंड डवलपिंग विंग में रियूजेबल व वन डिस्पोजेबल पीपीई किट के सैम्पल तैयार किए और पहली ही सैंपलिंग पास होने पर इस नए क्षेत्र में सेवा के साथ उतर गए। उस दौरान शहर समेत आसपास के होस्पीटलों में काफी जरूरत थी तो अन्य आवश्यक सामग्री के साथ कई किट डोनेट की। अब कंपनी होस्पीकेयर के सभी तरह के उत्पाद पीपीई किट, फेसशील्ड, मास्क, पर्सनल सलून सैफ्टी किट, गाउन आदि का निर्माण कर रही है और अभी तक एक लाख से ज्यादा उत्पाद बनाए जा चुके हैं। भारत के अलावा बंगलादेश, श्रीलंका, सऊदी अरब से इन्क्वायरी आने लगी है और एयरलाइंस, सिक्यूरिटी, पुलिस आदि के लिए उपयोगी साबित होने लगे हैं।

यह ऐसी किट 15 से 20 बार तक इस्तेमाल


कोविड-19 के अंतराष्ट्रीय मानक आधारित उत्पाद का निर्माण सूरत में भी दृढ़ उद्यमशीलता से संभव हो पाया है। वस्त्रनगरी सूरत में उत्पादित वॉशेबल पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट किट का 15 से 20 दफा इस्तेमाल किया जा सकता है। उधना-मगदल्ला रोड पर सोसियो सर्कल के निकट लिबटी एक्सपोर्ट के संचालक मयंक देवड़ा ने बताया कि वे गत 25 वर्षों से अस्पतालों में उपयोगी कपड़े का निर्माण कर रहे हैं और उनके यहां तैयार अस्पतालों में उपयोगी कपड़ा युरोप के कई देशों में भी वर्षों से निर्यात हो रहा है। कोरोना संक्रमण की भारत में शुरुआत के साथ ही दो-ढाई माह पहले परिचित चिकित्सकों ने बेहतर गुणवत्ता वाले पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट किट बनाने की सलाह दी। उसके बाद मयंक देवड़ा ने फैशन डिजाइनर बहन शिखा देवड़ा के साथ मिलकर इस पर कार्य शुरू किया और कुछ समय की मेहनत के बाद पीपीई किट व पीपीई ऑवरऑल के सैम्पल तैयार किए और रक्षा मंत्रालय की लेब में इसकी टेस्टिंग पास होने के बाद निर्माण प्रक्रिया शुरू की गई। अभी रोजाना करीब एक हजार पीपीई किट का निर्माण यहां अस्पतालय उपयोगी कपड़े के साथ-साथ किया जा रहा है। शिखा ने बताया कि 80 जीएसएम के लाइट वेट पॉलिस्टर कॉटेट फेब्रिक्स पर पर्सनल प्रोटेक्टिव किट का फेब्रिक्स एंटी माइक्रोबल, ब्लड एंड फ्ल्यूड रेजिस्टेंस, वॉटरप्रुफ और सबसे अहम श्वास लेने योग्य है। इसके अलावा इसे पहनने पर बाहर का जो तापमान है, वो ही कोरोना फ्रंटलाइन वॉरियर्स को महसूस होता है।

मॉडलिंग के बाद उतारा बाजार में


कोरोना से पैदा हुए संकट काल में सूरत कपड़ा बाजार के दो युवा उद्यमियों ने खाली हाथ बैठने के बजाय कोरोना वायरस से बचाव के लिए बेहद उपयोगी मास्क एन-95 व थ्री लेयर मास्क की किल्लत व कालाबाजारी का विकल्प तलाशने का तय किया। विकास व विशाल दोनों ने मिलकर कॉटन मास्क बनाने की तैयारियां की और उसके डिजाइन पर कार्य शुरू किया। मुंह पर आसानी से आने वाले और बात करने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होने वाले मास्क का डिजाइन पास होने के बाद उसकी मॉडलिंग लॉकडाउन में घर के सदस्यों से ही करवाई और जहां ब्रांडेड पार्वती फर्म के महंगे लहंगे तैयार होते थे उसी सचिन स्थित फैक्ट्री में डिजाइनर मास्क का निर्माण शुरू कर दिया। कॉटन मास्क बनाने के प्रोसेस की शुरुआत मात्र दो सौ पीस से हुई थी और इन्हें सबसे पहले अपनों के बीच बांटा गया जो खूब पसंद आया। इसके बाद देश की विभिन्न मंडियों में अपने ही व्यापारियों के बीच कॉटन मास्क बताया गया और उन्हें पसंद आने पर कुरियर से डिलीवरी होने लगी। फर्म की ऑनलाइन वेबसाइट के माध्यम से अब यह यूएस, यूके तक पहुंचने लगे है और इनकी संख्या 10 हजार के पार पहुंची है।

घर बैठी तो सिलने लगी मास्क


कोरोना संकटकाल में ऐसी ही एक वॉरियर्स का नाम बीनू राठौड़ भी है जो कि पेशे से फैशन डिजाइनर है, लेकिन लॉकडाउन-1.0 के साथ ही उसे ऑफिस जाने के बजाय मजबूरन घर पर रहना पड़ा। शहर के पांडेसरा क्षेत्र में रहने वाली और राजस्थान में मूल चुरु जिले के सोमासी गांव की बीनू ने अपने फैशन के हुनर का इस्तेमाल घर बैठे ही करने का तय किया और फिर शुरू कर दिया कॉटन मास्क बनाना। इस संबंध में बीनू बताती है कि संसाधन के अभाव में वह जैसे मास्क बनाना चाहती है वैसे तो नहीं बना पा रही, लेकिन हैंड सिलाईमशीन पर गत 15 अप्रेल से रोजाना वह 50 मास्क बनाकर निशुल्क बांट रही है। मास्क के लिए कॉटन कपड़े का इंतजाम भाई राजपाल व पिता जयसिंह आदि ने मिलकर घर पर ही दिया, इसके बाद वह रुकी नहीं और अभी तक दो हजार से ज्यादा मास्क बनाकर जरुरतमंद लोगों को बांट चुकी है।