यूं होती है भारतीय नौकाओं की जब्ती
गुजरात समेत आसपास के मछुआरे ज्यादातर अरबसागर की छोटी-बड़ी खाडिय़ों में मछली पकडऩे जाते है। भारत व पाकिस्तान की समुद्री सीमा के निकट इन खाडिय़ों में छिछला व कम गहरा पानी होने से यहां विपुल मात्रा में मछली मिलती है। पाकिस्तान मरीन सिक्युरिटी एजेंसी इन खाडिय़ों के नजदीक भारतीय मछुआरों को नौका समेत जलीय सीमा उल्लंघन का मामला बताकर पकड़ ले जाती है और अंतरराष्ट्रीय संधि के मुताबिक कैद मछुआरों को डेढ़ वर्ष की अवधि में छोड़ दिया जाता है लेकिन, जब्त नौकाएं नहीं छोड़ी जाती। हालांकि पहले ऐसा नहीं था, करीब 20 वर्ष पहले पाकिस्तान सरकार गिरफ्तार मछुआरों को उसी नौका में बिठाकर आईबीएल (इंटरनेशनल बॉर्डर लाइन) के पास छोड़ देती थी, जहां उन्हें भारतीय तटरक्षक बल की निगरानी में वेरावल के मत्स्य विभाग लाया जाता था और जांच-पड़ताल पूरी की जाती थी। लेकिन, करगिल युद्ध के बाद से ही पाकिस्तान सरकार ने गिरफ्तार भारतीय मछुआरों की रिहाई समुद्री मार्ग से बंद कर दी और उन्हें वाघा-अटारी बॉर्डर के रास्ते से छोड़ा जाने लगा। तब से ही भारतीय मछुआरे तो रिहा होकर वापस यहां पहुंच जाते है लेकिन, उनकी नौकाओं के लौटने का रास्ता बंद हो गया।
लगातार जारी है प्रयास
पाकिस्तान में जब्त भारतीय नौकाओं की मुक्ति के लिए केंद्र सरकारों को लगातार कहा जाता रहा है। हाल ही में भारत-पाकिस्तान की सचिव स्तरीय वार्ता में भी इस विषय पर विस्तार से चर्चा हुई है, आगे सकारात्मक परिणाम आने की गुंजाइश तो है।
वेलजी मसानी, अध्यक्ष, ऑल इंडिया फिशरमैन एसोसिएशन