script‘मां’ मर चुकी है ! | The mother is dead | Patrika News

‘मां’ मर चुकी है !

locationसूरतPublished: May 29, 2020 02:46:22 pm

Submitted by:

Dinesh M Trivedi

‘मां’ मर चुकी है और इस बात से बेखबर मासूम बच्चा उसे सोई हुई समझ कर उसकी चादर खींच रहा है। श्रमिक स्पेशल ट्रेन के बिहार स्थित मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद प्लेटफार्म पर कुछ ऐसा ही दृष्य था। ये सब देख कर लगता है कि देश की प्रगति के कर्णधार इन श्रमिकों परिवारों की ‘मां’(यहां मां का मतलब सरकारों की संवेदना और भावना से है) वाकई मर चुकी हैं।
The ‘mother’ is dead and the innocent child, unaware of this, is pulling her bed sheet as she is asleep. There was a similar view on the platform after the Shramikar Special train reached Muzaffarpur railway station in Bihar. Seeing all this, it seems that the ‘mother’ (here mother means the sensations and feelings of governments) of these workers’ families, who are the masters of the country’s progress, are really dead.

‘मां’ मर चुकी है !

‘मां’ मर चुकी है !

‘मां’ मर चुकी है और इस बात से बेखबर मासूम बच्चा उसे सोई हुई समझ कर उसकी चादर खींच रहा है। श्रमिक स्पेशल ट्रेन के बिहार स्थित मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद प्लेटफार्म पर कुछ ऐसा ही दृष्य था। किसी ने मोबाइल से वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर यह आम हो गया।
सिर्फ ये एक इकलौती घटना नहीं है, इसके अलावा भी देश के अन्य हिस्सों से लाचार श्रमिक परिवारों की व्यथा से जुड़ी तस्वीरें हर रोज एक कहानी कह रही हैं। कुछ लोग तो बीच रास्तों में ही दम तोड़ रहे है। तपती धूप में हजारों किलोमीटर पैदल सफर करने को मजबूरी, भोजन पानी नहीं मिलने की परेशानी या फिर बीमारी में समय पर इलाज नहीं मिल पाना। कारण कुछ भी रहे हो लेकिन समस्या गंभीर है।
ये सब देख कर लगता है कि देश की प्रगति के कर्णधार इन श्रमिकों परिवारों की ‘मां’(यहां मां का मतलब सरकारों की संवेदना और भावना से है) वाकई मर चुकी हैं। सरकार चाहे केन्द्र की हो या राज्यों की हो, ये दोनों जिम्मेदारी हंै कि एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने या मजबूरियां गिनाने के बदले आपसी तालमेल से काम करे।
सोई हुई समझ कर चादर हिला रहे इन बच्चों के लिए ममता भरी शीतल छांव की व्यवस्था करे। क्योंकि ये श्रमिक परिवार जब अपना कीमती वोट देकर इन सरकारों को चुनते हैं, तो उनसे यही अपेक्षा रखते हैं कि सरकार एक ‘मां’ं की तरह उनकी देख भाल करेगी। उन्हें सभी तरह सुविधा और सुरक्षा मुहैया करवाएगी।
कठिन समय में संसाधन और व्यवस्थाएं पर्याप्त हो या ना हो पर एक ‘मां’ की तरह उन्हें कभी इसकी कमी महसूस नहीं होने देगी। कभी उनकी दीनता या हीनता के कारण उनके साथ अन्याय नहीं होने देंगी। लेकिन पिछले दो माह से कोरोना संक्रमण के इस अभूतपूर्व महा संकट में श्रमिक परिवार बेबस और लाचार है। उन्हें ममता भरी छांव की जरुरत है लेकिन ये छांव कईयों नहीं मिल पा रही है। उन्हें लगने लगा हैं कि ‘मां’ वाकई मर चुकी है।
– दिनेश एम.त्रिवेदी

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