scriptअब तक पटरी पर नहीं लौटा नोटबंदी में अटका ग्रोथ का पहिया | The wheel of growth stuck in demonetisation has not returned to track | Patrika News

अब तक पटरी पर नहीं लौटा नोटबंदी में अटका ग्रोथ का पहिया

locationसूरतPublished: Nov 08, 2019 12:14:12 pm

नोटबंदी की तीसरी सालगिरह आज: सूरत समेत सारा देश मंदी के भंवर में फंसा, मोबाइल में सिमट गई बैंकिंग लेकिन बाजार में आर्थिक तरलता का संकट बरकरार, लाखों नौकरियां गईं

अब तक पटरी पर नहीं लौटा नोटबंदी में अटका ग्रोथ का पहिया

अब तक पटरी पर नहीं लौटा नोटबंदी में अटका ग्रोथ का पहिया

विनीत शर्मा

सूरत. नोटबंदी की शुक्रवार को तीसरी सालगिरह है। तीन साल पहले 8 नवंबर की रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अचानक नोटबंदी का ऐलान किया था, लोग सकते में आ गए थे। पांच सौ और हजार के नोट चलन से बाहर हो गए थे। उस समय लोग असमंजस में थे कि रोजमर्रा की जरूरतों को कैसे पूरा करें। धीरे-धीरे लोगों ने परिस्थितियों से समझौता किया तो डिजिटाइजेशन की राह निकली। तीन साल बाद हालत यह है कि पेमेंट के लिए लोग जेब से नोट तो छोडि़ए, एटीएम कार्ड भी नहीं निकालना चाहते। मोबाइल एप से पेमेंट का मौका मिलता है तो लोग उसी का इस्तेमाल करना चाहते हैं।
नोटबंदी के असर को इस तरह समझा जा सकता है कि तीन साल में बैंकिंग का तरीका बदल गया है। लोग अब कतार में नहीं लगते, एटीएम भी जरूरी होने पर ही इस्तेमाल करते हैं और पूरी बैंकिंग मोबाइल में सिमट गई है। उधर, बाजार की हालत तीन साल बाद भी तंग है। नोटबंदी के बाद बाजार में छाया आर्थिक तरलता का संकट बरकरार रहने से लोगों का रोजगार ही नहीं जा रहा है, नए रास्ते खुलने भी बंद हो गए हैं। जानकारों के मुताबिक बाजार से गायब हुई नगदी को फिर पटरी पर लौटने में दो-एक साल और लग सकते हैं।
नोटबंदी के अनुभव के बाद लोगों के लिए नोट की अनिवार्यता लगभग खत्म हो गई है। उनका मोबाइल ही नोट से भरा वॉलेट है और मोबाइल ही बैंक बन गया है। लोग अब वॉलेट में नोट लेकर घर से निकलने से परहेज करते हैं। कारोबारी जरूरतों की बात करें तो बाजार से नगदी गायब हो गई है। बगैर लिखित का कारोबार लगातार दम तोड़ता जा रहा है। इसका असर बाजार में दिख रहा है। कारोबारी नगरी सूरत में जहां बाजार का बड़ा हिस्सा अलिखित धंधे से आता था, वह समीकरण गड़बड़ा गया है।
गौरतलब है कि सूरत में प्रॉपर्टी से लेकर कपड़ा और हीरा कारोबार के लाखों के बड़े बड़े सौदे भी पांच रुपए की पॉकेट डायरी में होते थे। लेखा किताबों में नगदी संकट के कारण कारोबारी जेब में नगदी होने के बावजूद कारोबार नहीं कर पा रहे हैं। नोटबंदी के बाद बाजार में आए तरलता के संकट का कोई तोड़ न सरकार निकाल पाई है और न कारोबारी कोई व्यावहारिक रास्ता ईजाद कर पाए हैं। यही वजह है कि बाजार तीन साल बाद भी आर्थिक तरलता के संकट से जूझ रहा है।
इसका असर शहर की जीडीपी पर भी पड़ रहा है। देशभर से आए लोगों को नौकरियां देने के मामले में खास पहचान बना चुके शहर में बीते तीन साल में लाखों लोग नौकरियां गंवा चुके हैं। इस बार दीपावली पर भी हालांकि बाजार आखिरी दिनों में चला जरूर, लेकिन तीन साल पहले जैसी रौनक गायब थी। प्रॉपर्टी सेग्मेंट तीन साल से गति पकडऩे का इंतजार कर रहा है। जानकार मानते हैं कि जब तक बाजार से गायब हुई लिक्विडिटी दोबारा चलन में नहीं लौटती, इस संकट से उबरना मुश्किल है।
अभी लगेगा वक्त

नोटबंदी के बाद बाजार में आर्थिक तरलता का संकट अब तक बरकरार है। नोटबंदी से परेशान कारोबारियों के लिए जीएसटी कोढ़ में खाज साबित हुआ। मुझे लगता है कि बाजार को आर्थिक तरलता का संकट 2021 तक झेलना पड़ सकता है। उसके बाद हालात सुधरने की उम्मीद है।
गोविंद नारायण, कपड़ा व्यापारी, सूरत
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