FIRST REPUBLIC DAY : हरिपुरा से लाए गए 76 फीट लंबे पोल पर फहराया था तिंरगा
- सत्याग्रही निरंजना कालार्थी ने पत्रिका के साथ ताजा की बारडोली के स्वराज आश्रम में पहले गणतंत्र दिवस की यादें
- Satyagrahi Niranjana Kalarthi refreshes her memories with PATRIKA of the first Republic Day at the Swaraj Ashram in Bardoli

दिनेश एम.त्रिवेदी/ हितेष माह्यावंशी
सूरत. 26 जनवरी 1950 का वो दिन बहुत खास था हर तरफ उत्साह और उमंग का माहौल था। क्योंकि आजादी के बाद से इस दिन का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। भारत माता के जयघोष के बीच 76 फीट लंबे पोल पर बारडोली के स्वराज आश्रम में हर्षोल्लास से तिरंगा फहराया गया था। आश्रम में रहने वाले करीब 500 परिवारों के अलावा आस-पास के हजारों ग्रामीण कार्यक्रम में मौजूद रहे।
आश्रम में मानद मंत्री के रूप में कार्यरत निरंजना बेन कालार्थी ने पत्रिका साथ अपनी यादें ताजा करते हुए बताया कि उनके पिता उत्तमचंद भाई शाह सत्याग्रही थे। सरदार पटेल के साथ स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे। लोग उन्हें सरदार पटेल के हनुमान कह कर बुलाते थे। उनका परिवार स्वराज आश्रम में ही रहता था। आश्रम में ही उनका जन्म हुआ था। तब से वह आश्रम में ही रह रही हैं।
1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से गणतंत्र की तैयारी शुरु हो गई थी। सरदार पटेल जब भी आश्रम आते थे। संविधान निर्माण के बारे में सत्याग्रहियों से चर्चा करते रहते थे। आजादी के बाद से सभी में एक नए जोश व नई उमंग का संचार हो गया था। गणतंत्र दिवस की घोषणा होने पर 1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जिस 76 फीट लंबे पोल पर ध्वजारोहण किया गया था।
उसे वहां से आश्रम में लाया गया था। आश्रम में षडक़ोण आकार का प्लेटफॉर्म बनाया गया था। उस पर करीब दस फीट पोल को जमीन के अंदर डाल कर ६६ फीट उंचा तिरंगा लहराया गया। हजारों लोगों ने आन बान और शान के साथ तिरंगे को सलामी दी थी। हर तरफ भारत माता की जयकारे गूंज रहे थे। तब उनकी उम्र सिर्फ ग्यारह साल की थी लेकिन आज भी वो मंझर उन्हें अच्छे से याद हैं।
आश्रम में मिठाइयां बांटी गई थी। निरंजना बेन ने बताया कि उसके बाद आश्रम में ही बाल कथा लेखक मुकुल कालार्थी से उनकी शादी हुई। शादी के बाद वह मुंबई गई लेकिन वहां मन नहीं लगा। जल्द ही अपने पति को साथ लेकर आश्रम में लौट आई। फिर दोनों ने आश्रम में रह कर ही शिक्षा का अलख जगाया। मुकुल कालार्थी ने करीब 300 बाल कथाएं लिखी।
वहीं निरंजना बेन आश्रम में आदिवासी छात्रों के लिए स्कूल का संचालन करने लगी। उन्होंने बताया कि हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन का पोल पिछले साल तक आश्रम में ही था। लेकिन फिर पुर्ननिर्माण कार्य होने पर उसे हटा दिया गया।
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