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सूरत

अंतिम समय तक चलती रही कॉलेज प्राचार्यों को रिझाने की कोशिश

वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के नौ सिंडीकेट पदों के लिए बुधवार को मतदान होगा। 129 मतदाताओं में सर्वाधिक मत प्राचार्यों के हैं, इसलिए…

सूरतOct 13, 2018 / 12:13 am

मुकेश शर्मा

Try to persuade college principals to last till last

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सूरत।वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के नौ सिंडीकेट पदों के लिए बुधवार को मतदान होगा। 129 मतदाताओं में सर्वाधिक मत प्राचार्यों के हैं, इसलिए सभी उम्मीदवार अंत तक प्राचार्यों को अपनी ओर खींचने के प्रयास में जुटे रहे।

कुल मतों में 55 प्राचार्यों के, 16 विभागाध्यक्षों के, 36 सीनेट सदस्यों के और बाकी विभिन्न पदाधिकारियों के हैं। सिंडीकेट की पांच सामान्य सीटों के लिए 10 उम्मीदवार, शिक्षक की एक सीट के लिए दो, विभागाध्यक्ष की एक सीट के लिए दो और प्राचार्य की एक सीट के लिए चार उम्मीदवार मैदान में हैं। इस बार हर सीट को लेकर शुरुआत से ही विवाद चल रहा है। पांच सामान्य सीटों पर एबीवीपी के उम्मीदवार घोषित होते ही संगठन में विवाद शुरू हो गया। संगठन कार्यकर्ता गणपत धामेलिया को संगठन से नामांकन भरने का अवसर नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय नामांकन भरा। नामाकंन रद्द न हो, इसलिए उन्होंने अलग से एफिडेविट भी जमा करवाया। यह एफिडेविट विश्वविद्यालय में चर्चा का विषय बना रहा।


इसमें उन्होंने लिखा था किउनके हस्ताक्षर वाला नामांकन वापस लेने के लिए अगर विश्वविद्यालय को पत्र मिले तो उसे मान्य नहीं किया जाए। उनसे चार-पांच कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवाए गए हंै, जिनका नामांकन वापस लेने में उपयोग किया जा सकता है। धामेलिया के एफिडेविट को संगठन में बगावत का बिगुल बताया गया। संगठन के कई सदस्यों के आपसी मतभेद खुलकर सामने आ गए। एबीवीपी के कई कार्यकर्ताओं का कहना है कि सिंडीकेट चुनाव की घोषणा से पहले उनसे कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए गए थे। संगठन तय करेगा कि कौन चुनाव लड़ेगा और किसे प्रत्याशी बनाया जाए। हाल ही संगठन ने पत्रकार वार्ता कर एबीवीपी से सिंडीकेट चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों के नाम घोषित किए थे। इसमें चुनाव जीत चुके सीनेटरों और सिंडीकेट सदस्यों को बाहर कर दिया गया था।

गणित विभाग में विभागाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने के मामले को सिंडीकेट सदस्यों ने सिंडीकेट चुनाव से जोड़ा। कुलपति पर आरोप लगाया गया कि विभागाध्यक्ष को इसलिए नियुक्ति नहीं दी जा रही है, क्योंकि वह उनके पक्ष में नहीं हैं। विभागाध्यक्ष नियुक्त हो जाते तो वह सिंडीकेट चुनाव के लिए नामांकन भर सकते थे और मतदान भी कर सकते थे।

कुलपति निशाने पर


डॉ.घनश्याम रावल को सिंडीकेट से दूर करने के लिए कुलपति डॉ. शिवेन्द्र गुप्ता ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की और सभी पदों से बेदखल कर दिया। डॉ.रावल ने अदालत में याचिका दायर की और विश्वविद्यालय के आदेश पर स्टे ले आए। डॉ.रावल का नाम बाद में मतदाताओं में जोड़ा गया। अन्य उम्मीदवारों ने कुलपति पर मनपसंद उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार करने का आरोप लगाया। सिंडीकेट चुनाव को लेकर कुलपति के खिलाफ कई उम्मीदवारों ने शिक्षामंत्री और राज्यपाल से शिकायत की है। कुलपति पर चुनाव में पारदर्शिता का ध्यान नहीं रखने का भी आरोप लगाया गया।

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