बीते छह दशक से यह धारणा प्रबल हो रही है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है। लोग धीरे-धीरे वर्षा जल के संग्रहण पर ध्यान दे रहे हैं। सदियों से बारिश के पानी को सहेजने की जो तालाब संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही थी, इस जागरुकता ने उसे फिर जीवंत कर दिया है। लोग तालाबों को सहेजने ही नहीं, नए सिरे से तालाब विकसित करने को लेकर भी सजग हुए हैं। जहां पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, नए तालाबों के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित हो रहा है। अभिनव प्रयोगों को अपनाने में हमेशा से दो कदम आगे रहने वाला सूरत जल प्रबंधन के कौशल में भी दूसरे शहरों से मीलों आगे है। वरियाव का तालाब इसका जीता जागता उदाहरण है। राज्य सरकार की जल संचयन योजना के तहत निर्मित तीन बीघा से अधिक क्षेत्रफल में फैला यह तालाब आसपास के किसानों के लिए वरदान साबित हुआ है। तालाब में संचित वर्षा जल से करीब 200 बीघा जमीन सिंचित होगी।
इस तालाब को कैनाल से भी जोड़ा गया है। जब बारिश का संचित पानी खत्म हो जाएगा, सिंचाई के लिए इसे कैनाल के पानी से भरा जाएगा। फिलहाल कैनाल बंद होने के कारण किसान इसी तालाब से खेतों को सींच रहे हैं। पानी को बांधे रखने के लिए इसके चारों ओर पौधारोपण किया जा रहा है। तालाब के पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए तालाब किनारे पंप लगाया गया है। तालाब से खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए लाइनिंग की गई है। जब भी सिंचाई की जरूरत होती है, पंप से पानी खींच कर खेतों को सींचा जाता है।
रंग लाए प्रयास पिछले साल मैंने इस तालाब के लिए प्रयास किए थे। किसी वजह से काम बीच में अटका तो इस बार राज्य सरकार की जल संचय योजना के तहत इसे पूरा कर लिया गया। तालाब में जमा बारिश के पानी से खेतों की सिंचाई होने लगी है।
गिरिजा शंकर मिश्रा, नेता शासक पक्ष, सूरत मनपा
गिरिजा शंकर मिश्रा, नेता शासक पक्ष, सूरत मनपा