२२ वर्षों में यह पहला मौका है, जब पाटीदार आंदोलन, उना में दलित उत्पीडऩ, महिलाओं के यौन उत्पीडऩ में भाजपा नेताओं का नाम आने, ओबीसी समाज की नाराजगी, किसानों की बदहाली, नोटबंदी और जीएसटी जैसे आम आदमी को छूते मुद्दों के बीच भाजपा अपनी साख बचाने की जद्दोजहद कर रही है।
उधर, प्रदेशभर में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना रहे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की साख भी दांव पर है। इन सबके बीच चुनाव विश्लेषकों के लिए मतदाताओं का रुझान जानने की उत्सुकता थी। आमतौर पर मतदान को लेकर मुखर रहने वाले सूरत के मतदाताओं ने इस बार मौन धारण कर लिया। मतदान कर बूथ से बाहर आ रहे लोगों ने मतदान और चुनाव के मुद्दों पर बात करने के प्रति उत्साह नहीं दिखाया। बहुत कम लोगों ने बूथ से बाहर आकर अपने मन की बात की। मतदाताओं का यह मौन चुनाव विश्लेषकों को हैरत में डाल
रहा है।
तापी के हिंदला गांव के लोगों ने किया मतदान का बहिष्कार
सोनगढ़ तहसील के हिंदला गांव में सरकार की ओर से प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराए जाने से नाराज १५०० ग्रामीणों ने विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर मतदान नहीं करने का निर्णय लिया। इस बारे में 28 अक्टूबर को ग्रामीणों ने सोनगढ़ तहसीलदार को लिखित में शिकायत भी की थी। गांव में प्राथमिक सुविधाओं के अभाव के साथ-साथ मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं होने से नाराज ग्रामीणों ने लंबे समय से मांग कर सरकार के खिलाफ विरोध भी किया था। ग्रामीणों के मतदान बहिष्कार की धमकी मिलने पर प्रशासन की ओर से लोगों को समझाने के प्रयास भी किए गए, लेकिन असफल रहे। शनिवार को हुए विधानसभा चुनाव में हिंदला गांव के एक भी व्यक्ति मतदान केन्द्र पर नहीं पहुंचे।