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जहां हुआ विरोध, वहां से भी पटेल को मिली बड़ी लीड

locationसूरतPublished: May 24, 2019 09:40:12 pm

Submitted by:

Sunil Mishra

वलसाड सीट पर केसी पटेल की जीतअपने गढ़ में भी पिछड़ गए जीतू चौधरी

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जहां हुआ विरोध, वहां से भी पटेल को मिली बड़ी लीड


वापी. वलसाड संसदीय सीट की मतगणना के अनुसार यदि बैलेट पेपर की गिनती को छोड़ दें तो कांग्रेस प्रत्याशी हर क्षेत्र और हर राउण्ड में भाजपा उम्मीदवार से पीछे रहे। शुरू में बैलेट पेपर में कांग्रेस के जीतू चौधरी को 1873 और भाजपा के डॉ. केसी पटेल को 1538 वोट मिले थे। कुछ देर ही सही इस परिणाम ने कांग्रेस उम्मीदवार और समर्थकों में खुशी जगाई, लेकिन उसके बाद खुली इवीएम के परिणाम जब मिलने लगे तो पूरा माजरा ही बदल गया। कांग्रेसी विधायकों के क्षेत्र में भी भाजपा के डॉ. केसी पटेल ने कांग्रेसी प्रतिद्वंदी पर भारी बढ़त बनाई थी। जहां से भाजपा के विधायक हैं ऐसी पारडी, वलसाड, धरमपुर और उमरगाम क्षेत्र में भारी बढ़त बनाने वाले केसी पटेल को मिले वोटों को देखकर दोपहर में ही यह पक्का हो गया कि इस बार वे 2014 से बड़ी जीत दर्ज कर रहे हैं। पारड़ी में भाजपा के केसी पटेल को १,23,959 वोट मिले, जबकि जीतू चौधरी को महज 35,685 वोट से ही संतोष करना पड़ा। वलसाड में केसी पटेल को 1,38,880 वोट के सामने जीतू चौधरी को 34,225 वोट मिला। उमरगाम क्षेत्र से डॉ. केसी को 18, 886 तथा जीतू चौधरी को 31,921 वोट मिला। जबकि धरमपुर में डॉ. केसी पटेल जहां 95,832 वोट लेने में कामयाब रहे तो जीतू चौधरी को 77,260 वोट ही मिले।
कांग्रेस प्रत्याशी जीतू चौधरी अपने विधानसभा क्षेत्र कपराड़ा में भी बढ़त नहीं बना पाए। उन्हें 77,778 वोट मिले, केसी पटेल को यहां से भी 1,09,464 वोट मिले। वांसदा से कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी और यहां लीड का ज्यादा अंतर नहीं रहा। जीतू चौधरी को यहां से 1,00,436 वोट मिला और केसी पटेल को 1,02,171 मत मिले। यहां खास बात यह रही है कि वांसदा विधायक के गांव से ही करीब चार सौ की लीड केसी पटेल को मिली। डांग में भी केसी पटेल को 72,150 और जीतू चौधरी को 59,005 मत प्राप्त हुए। इसके अलावा तीसरे नंबर पर नोटा रहा। नोटा में 19307 वोट पड़े थे।
कई जगहों पर केसी का हुआ था विरोध
डांग, वांसदा और कपराड़ा के आदिवासी पट्टी कई गांवों मे केसी पटेल का चुनाव प्रचार के दौरान विरोध भी हुआ था। इसे देखते हुए कांग्रेस को इन विस्तारों से अच्छी खासी लीड की उम्मीद थी। लेकिन भाजपा ने समय पर आदिवासी समेत बड़े नेताओं को उतारकर लोगों की नाराजगी दूर की। जबकि कंाग्रेस इसी मुगालते में रह गई कि भाजपा प्रत्याशी की नाराजगी का लाभ उसे वोट के तौर मिलेगा। स्थानीय राजनीति पर नजर रखने वालों के अनुसार कांग्रेस प्रत्याशी और कार्यकर्ताओं ने इस नाराजगी को भुनाने के लिए जोर नहीं लगाया, जबकि भाजपा ने समय रहते डैमेज कंट्रोल कर स्थिति सुधारने के साथ मजबूत भी कर ली।
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