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मौनी अमावस्या पर इस विदेशी लड़की ने शेयर की अपनी कहानी, जानिए क्या कहा?

Published: Jan 17, 2018 04:48:22 pm

न्यूजीलैंड से आई रूबी बताती है कि यह हरे-भरे फलों से लदे सुव्यवस्थित जंगल की तरह है।

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उत्तर प्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी वाराणसी में मौनी अमावस्या पर लाखों देशी-विदेशी श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, दुर्गाकुंड एवं संकट मोचन हनुमान मंदिरों में अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने पहुंचे। ऐतिहासिक दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, प्रयाग घाट, असि घाट, केदार घाट सहित तमामों गंगा घाटों पर बहुत से श्रद्धालु सुबह लगभग चार बजे से ही आने लगे थे। सुबह आकाश साफ और बाद में हल्की धूप के बीच श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर पूजा-अर्चना की और गरीबों का अन्न दान किए। इन श्रद्धालुओं में
भारतीय धर्म और दर्शन दुनिया के अन्य धर्म और दर्शन से बिल्कुल अलग है। न्यूजीलैंड से आई रूबी बताती है कि यह हरे-भरे फलों से लदे सुव्यवस्थित जंगल की तरह है। आत्मा की खोज तभी हो सकती है जब हम उसके स्वतंत्र अस्तित्व को मानते हैं। रूबी कहती है कि न्यूजीलैंड के आकलैंड में रहने वाली उनकी बडी ***** कमललता से यहां के बारे में सुनती आयी हूं। यहां आकर और खासकर गंगा में स्नानकर अपने को धन्य मानती हूं। अपनी बडी ***** से प्रेरणा के चलते ही मैं यहां लेटे हनुमान मंदिर में हनुमान जी का दर्शन किया।
उन्होंने बताया कि इतने विशाल हनुमान जी की मूर्ति आस्था को मजबूती प्रदान करती है। लोगों को देखा कि दर्शन के लिए कतारबद्ध लाइन में शांतिपूर्वक हाथ जोड़े खड़े रहना अपने आप में आस्था को परिलक्षित करती है। रूबी ने बताया कि वह मूल रूप से बिहार की रहने वाली हैं लेकिन बिहार में कहां कि रहने वाली हैं, उन्हें उनके पूर्वजों के गांव का पता नहीं। उनके पूर्वज शायद 100-200 साल पहले रोजी रोटी के लिए अपना वतन छोड दिये थे। उन्हें “गिरमिटया” कहा जाता था। उन्होंने बताया कि जब उन्हें पता चला कि वह भारत की रहने वाली हैं, उन्होनें भारत घूमने का विचार बनाया। उन्होंने पुस्तकों में और बड़ी ***** से यहां की संस्कृति, आध्यात्म, योग के बारे में जाना।
बडी ***** की प्रेरणा से वह अपने आस-पास में भारत की संस्कृति और यहां के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करती हैं। वह हर मंगलवार को अपने यहां एक मंडली बनाकर हनुमान चालीसा का पाठ भी कराती है। न्यूजीलैंड की रहने वाली कमललता ने बताया कि उन्हें अपने देश से बहुत लगाव है। वह कई बार भारत भ्रमण कर चुकी हैं। उन्होंने अपने पिता को मानसरोवर का यात्रा कराया। वह चारों धाम करना चाहती हैं। कमललता ने बताया कि वह जितनी बार भारत आती हैं उतनी ही बार उन्हें अध्यात्म की नई ऊर्जा मिलती है। उन्होंने कहा कि” मेरा भारत देश महान।” जो प्रेम, भाईचारा, अपनापन यहां देखने को मिलता है वह और कहीं मिल ही नहीं सकता।
उन्होंने कहा कि आध्यात्म भारत की ताकत है। जब कभी मन में दुविधा हो, मन भ्रमित हो या व्याकुल हो तो योगाभ्यास करते ही हम पाते हैं मन में एकदम निश्चलता आ जाती है। योगासन का यही बड़ा प्रभाव है कि मन की सब दुविधाएँ और द्वन्द शान्त हो जाते हैं। कमललता ने बताया कि प्राचीनकाल से ही भारतीय लोग साधना या ध्यान करने के लिए हिमालय की शरण में जाते रहे हैं। हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी कोई बीमारी नहीं सुनाई नहीं देती। इसे ध्यान और योग के माध्यम से और बेहतर करके यहां की औसत आयु सीमा बढ़ाई जा सकती है।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी धर्म आपको रेडिमेड उत्तर देते हैं। वहां सब कुछ निर्धारित कर दिया गया है कि ईश्वर एक ही है और और उसके ये संदेशवाहक हैं लेकिन भारतीय धर्म और दर्शन में ये सब नहीं के समान है। यहां मोक्ष को जानने और समझने का एक मार्ग है। यह बहुत मुश्किल से समझने में आता है कि हम एक मनुष्य हैं और हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि “मैं कौन हूं‘‘, क्या मेरा अस्तित्व है, मरने के बाद भी क्या मैं रहूंगा। मनुष्य जन्म आपको कैसे मिला है यह जानना और इसके महत्व को तभी समझा जा सकता है जबकि हम दूसरों के द्वारा बताए गए उत्तर से मुक्त होकर खुद इसकी तलाश करें। पश्चिमी धर्मों ने लोगों के भीतर के प्रश्नों को लगभग मार दिया है।
कमललता ने बताया कि वह भी धन्य हो गई कि आज मौनी अमावस्या के पर्व पर त्रिवेणी संगम में स्नान किया। उन्होंने बताया कि जो श्रद्धालु गंगा में स्नान कर वापस निकल रहा था उसके चेहरे के भाव प्रकट कर रहे थे कि उसे कोई अनमोल खजाना मिल गया है। चेहरे पर पूर्ण शांति मानो ईश्वर से उसका साक्षात्कार हो गया है। संगम तट का अद्वतीय भीड़ उनकी जिन्दगी का न भूलने वाला नजारा होगा, जहां पापनाशिनी और मोक्षदायिनी गंगा के प्रति लोगों की आस्था प्रबल है। उन्होंने बताया कि भारत में लोगों का अपने त्यौहार, धर्म-कर्म, पूजा-पाठ के प्रति कड़ी आस्था देखकर वह सुखद अनुभूति महसूस करती है। उन्होंने बताया कि सभी प्रवासी भारतीय अपने स्थान पर सभी भारतीय त्यौहारों होली, दिवाली, दशहरा मनाकर खुशियां मनाते हैं।
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