मंदिर

महाकाली को सम्मान- शैलपुत्री का आह्वान…

अर्थात जो देवी सब प्राणियों में माता रूप में स्थित है, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार बारंबार।

Sep 22, 2017 / 01:46 pm

सुनील शर्मा

dakshnishwar kali temple

‘मार्कण्डेय पुराण’ में सावर्णिक मन्वन्तर की कथा के अंतर्गत देवी माहात्म्य में देवी-दूत संवाद (श्री दुर्गा सप्तशती के पांचवें अध्याय के इकहतरवें श्लोक में कहा गया है…
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थात जो देवी सब प्राणियों में माता रूप में स्थित है, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार बारंबार।

नवरात्र एक ऐसी नदी है, जो भक्ति और शक्ति के तटों के बीच बहती है। सनातन हिंदू धर्म में नवरात्र की प्रासंगिकता स्वयं सिद्ध है। भारतीय पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) से लेकर नवमी तक शारदीय नवरात्र में मातृशक्ति की आराधना का दौर और जोर होता है। तिथि का क्षय भी हो सकता है और वृद्धि भी। कभी-कभी संयुक्त तिथि भी हो जाती है। तिथि वृद्धि से दस महाविधाओं की साधना भी हो जाती है।
शारदीय नवरात्र में उपवास किया जाता है। उपवास वह साबुन है, जो पाचन तंत्र को स्वच्छ करता है। पाचन तंत्र की स्वच्छता दरअसल अंत:करण की स्वच्छता की सीढ़ी है। स्वच्छ अंत:करण तब पवित्र हो जाता है, जब निर्मल, निश्छल और समर्पित भाव से आराधना की जाती है। उपवास के साथ आराधना करते हुए मातृशक्ति का अनुष्ठान किया जाता है। मातृशक्ति के अनुष्ठान की यह शृंखला प्रथम नवरात्र से प्रारंभ होकर नवमी तक चलती रहती है।
देवी कवच में ‘मातृशक्ति नवदुर्गा’ के नौ रूप बताए गए हैं। जैसे शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री। उल्लेखनीय है कि प्रथम नवरात्र में मातृशक्ति के अनुष्ठान में अनुग्रह रूप में शैलपुत्री का आह्वान किया जाता है और आराधना करते हुए महाकाली रूप का सम्मान किया जाता है। श्री दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय ‘मधु-कैटभ वध’ में माता महाकाली की कथा का सार यह है कि जब संपूर्ण ब्रह्मांड में जल-प्रलय था तब भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।
चूंकि भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में थे, अत: उनके कानों में मैल जमा हो गया था, जिसे निकालकर उन्होंने बाहर फेंका तो उससे ‘मधु-कैटभ’ नामक दो राक्षस पैदा हो गए जो ब्रह्माजी को मारने के लिए दौड़े। तब ब्रह्माजी ने योगनिद्रा की स्तुति की, जो महाकाली के रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने ‘मधु-कैटभ’ को मोहित किया। तब विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से ‘मधु-कैटभ’ का वध कर दिया। सारांश यह कि महाकाली के रूप में ‘मां’ ने ब्रह्मा की प्रार्थना सुनी और रक्षा की। वर्तमान में इसका संदेश यह है कि ‘मां’ चूंकि रक्षा करती है तथा संतान की सुरक्षा हेतु अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करती, अत: संतान का कर्तव्य है कि ‘मां’ की सेवा करे। ‘मां’ को सम्मान दे।

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