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मंगलवार को है देवउठनी एकादशी, इन उपायों से पूरे साल हो जाएगी मौज

Published: Oct 30, 2017 01:19:48 pm

देवउठनी एकादशी ३१ अक्टूबर को देश भर में मनाई जाएगी। शास्त्रों के अनुसार चार मास के बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं।

devutthana ekadashi

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बोधन का अर्थ है जागना अत: देव प्रबोधन का अर्थ होता है देवताओं का जागना। इस दिन का विशेष महत्त्व स्वयं में देवत्व को जगाना भी होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु वर्ष के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं तथा वे कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठ जाते हैं। अत: इस दिन को देवोत्थान, देव प्रबोधिनी या देव उठनी एकादशी भी कहते हैं। देवउठनी एकादशी ३१ अक्टूबर को देश भर में मनाई जाएगी। शास्त्रों के अनुसार चार मास के बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इस दिन भगवान की पूजा का फल हजार गुणा मिलता है।
इस दिन व्यक्ति धर्म-कर्म के रूप में देवताओं का स्वागत करें, अपने मन में शुभ विचारों का जागरण करें। यह संकल्प अपने मन में लें कि भगवान हमें अज्ञानता रुपी अंधकार से ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले जाएं। हम सत्य आचरण करें तथा किसी के प्रति ईष्र्या, द्वेष के भाव न रखें। इस दिन देवताओं का पूजन व आह्वान करें ताकि देवगण हमें वर्ष भर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें और कुलपूज्य देवताओं का भी जागरण तथा पूजन करें। मन को बुराइयों से दूर रखने का प्रयास करें।
इस मंत्र से श्रीहरि को जपें
भगवान विष्णु को चार माह की योग निद्रा से जगाने के लिए घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े आदि वाद्यों की मंगल ध्वनि के बीच ये श्लोक पढऩा चाहिए।
जागरण मंत्र-
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत्सुप्तमिदंभवेत।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धत वसुंधरे।
हिरण्याक्ष प्राणिघातिन्त्रैलोक्ये मंगलमकुरु।।

पूजा विधि को बनाएं रखें पारंपरिक
देव उठनी एकादशी के दिन सायंकाल शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल को स्वच्छता के साथ साफ कर लें तथा आटा एवं गेरू (लाल रंग) से भगवान के जागरण व स्वागत के लिए रंगोली बनाएं, प्रतीक स्वरूप भगवान के पैर मांडें़। ग्यारह घी के दीपक देवताओं के निमित्त जलाएं। हल्दी एवं गुड़ से पूजा करें। भगवान के भोग में ऋतु फल, लड्डू, बतासे, गुड़, मूली, गन्ना, ग्वारफली, बेर, नवीन धान्य इत्यादि समस्त पूजा सामग्री तथा प्रसाद रखें। शुद्ध जल, सफेद वस्त्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, पुष्पमाला, अक्षत, रोली, मोली, लौंग, पान, सुपारी, हल्दी, नारियल, कर्पूर, पंचामृत, इत्यादि पूजा सामग्री से देवताओं का पूजन कर उन्हें रिझाने का प्रयास करें।
इस दिन देवी-देवताओं से वर्ष पर्यन्त सुख समृद्धि की कामना करें। विवाह योग्य संतानों का शीघ्र विवाह हो तथा विवाहितों के उत्तम संतान हों, ऐसी कामना के साथ देवताओं की स्तुति तथा गुण-गान करें।
तुलसी विवाह का है विशेष महत्त्व
पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष में देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी शालिग्राम के विवाह का महत्त्व है। यह महत्त्व प्रकृति और परमात्मा में सामंजस्य का दिन है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह के संकल्प और उसे पूरा करने से व्यक्ति सुखी तथा समृद्ध होता है। संकल्प पूर्ण करने में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
विवाह योग्य जिन बच्चों की जन्म कुंडली में मांगलिक दोष के कारण विघ्न आ रहा हो उनके द्वारा तुलसी शालिग्राम विवाह करने से मांगलिक दोष का परिहार होता है। इसी प्रकार जिन दम्पत्तियों को कन्या सुख प्राप्त नहीं है, उन्हें तुलसी विवाह करने से कन्या दान का फल मिलता है। तुलसी विवाह के दिन वस्त्र आदि से तुलसी शालिग्राम का श्रृंगार करें। सायंकाल तोरण तथा ईख (गन्ने) का मंडप बनवाकर गणपति मातृकाओं आदि का पूजन के बाद विधिवत तुलसी विवाह करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और इस दिन का विशेष लाभ उठाएं।
भगवान विष्णु को रिझाने और सान्निध्य पाने मार्ग है एकादशी
एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है। इस दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए। रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए।
प्रबोधिनी एकादशी के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अघ्र्य देना चाहिए। इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है।
यह भी कहा जाता है कि जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं। इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात: काल स्नान के बाद भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोडऩा चाहिए। जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुन: ग्रहण करनी चाहिए। धार्मिक ग्रंथों में तो यहां तक कहा गया है कि जो व्यक्ति ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग जाकर श्रीहरि का सान्निध्य पाते हैं।
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