मंदिर

इस मंदिर में आज भी भक्तों को दर्शन देती है मां काली, मन्नत होती है पूरी

मां काली ने रात को अपने भक्त को सपने में दर्शन दिए तथा कहा कि मैं स्वयं आपके राज्य में रहूंगी, लोग मुझे लखना मैया के नाम से जानेंगे

Apr 09, 2016 / 11:37 pm

सुनील शर्मा

kalika mandir lakhna

उत्तर प्रदेश में इटावा के लखना में स्थित कालिका देवी का मंदिर अपने आप में अनूठा है। इस मंदिर का प्रधान सेवक प्राचीन काल से ही दलित होता है। लखना को प्राचीन काल में स्वर्ण नगरी के नाम से जाना जाता था। यहां कालिका देवी का मंदिर मुगल काल से हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है। द्वापर युग के महाभारत काल के इतिहास को आलिंगन किए ऋषियों की तपोभूमि यमुना चंम्बल सहित पाँच नदियों के संगम पर बसी ऐतिहासिक नगरी लखना में स्थापित माँ कालिका देवी का मन्दिर देश के कोने कोने में प्रसिद्ध है। यह मंदिर नौ सिद्ध पीठों में एक है।

मंदिर में मौजूद है सैयद बाबा की दरगाह
इस मंदिर का एक पहलू यह है, कि इसके परिसर में सैयद बाबा की दरगाह भी स्थापित है और मान्यता है कि दरगाह पर सिर झुकाए बिना किसी की मनौती पूरी नहीं होती। मन्दिर धर्म, आस्था, एकता, सौहार्द, मानवता व प्रेम की पाठशाला है। चैत्र तथा शारदेय नवरात्रि में यहां बडा मेला लगता है।

श्रद्धालु मांगते हैं मन्नत
मेले में देश के दूर दराज से आये श्रद्धालु अपनी मनौती मांगते हैं तथा कार्य पूर्ण होने पर ध्वजा, नारियल, प्रसाद व भोज का आयोजन श्रद्धाभाव से करते हैं। शरद नवरात्रि प्रारम्भ होते ही कालिका शक्ति पीठ के दर्शन करने के लिये उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश गुजरात, समेत देश के तमाम राज्यों से लोग आकर माँ के दर पर दंडवत कर मनौतियां मनाते हैं। यह नगरी एक समय में कन्नौज के राजा जयचन्द्र के क्षेत्र में थी लेकिन बाद में स्वतंत्र रूप से लखना राज्य के रूप में जानी गई।

भक्त को दर्शन देने मां खुद आई थी मंदिर में

प्रचलित कथाओं के अनुसार दिलीप नगर के जमींदार लखना में आकर रहने लगे थे। इस स्टेट के राजा जसवंत राव ब्राहमण परिवार में जन्मे थे तथा ब्रिटिश हुकूमत में अंग्रेज शासकों ने उन्हें सर तथा राव की उपाधि से नवाजा था। बीहड़ क्षेत्र के मुहाने पर स्थित इस मन्दिर के राज परिवार के लोग उपासक थे।

यमुना पार कंघेसी घार में उक्त देवी स्थल पर राजा जी नित्य यमुना नदी पार कर पूजा अर्चना करने गांव जाते थे। बताया जाता है, कि एक दिन राव साहब गांव देवी पूजा करने जा रहे थे। बरसात में यमुना नदी के प्रबल बहाव के चलते बाढ़ आ गई और मल्लाहों ने उन्हें यमुना पार कराने से इंकार कर दिया, वह उस पार नहीं जा सके और न ही देवी के दर्शन कर सके, जिससे राजा साहब व्यथित हुए और उन्होंने अन्न जल त्याग दिया।

उनकी इस वेदना से माँ द्रवित हो गईं और शक्ति स्वरूपा का स्नेह अपने भक्त राव के प्रति टूट पड़ा। रात को अपने भक्त को सपने में दर्शन दिए और कहा कि मैं स्वयं आपके राज्य में रहूंगी और मुझे लखना मैया के रूप में जाना जाएगा। इस स्वप्न के बाद राव साहब उसके साकार होंने का इन्तजार करने लगे। तभी अचानक उनके कारिन्दों ने बेरीशाह के बाग में देवी के प्रकट होने की जानकारी दी।

सूचना पर जब राव साहब स्थल पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पीपल का पेड धू-धू कर जल रहा है। चारों ओर घण्टों और घडियाल की आवाज गूंज रही थी। जब देवीय आग शान्त हुई तो उसमें से देवी के नवरूप प्रकट हुए जिसे देख कर राव साहब आहलादित हो गए। उन्होंने वैदिक रीति से माँ के नव रूपों की स्थापना कराई और 400 फुट लम्बा व 200 फुट चौडा तीन मंजिला मन्दिर बनवाया जिसका आँगन आज भी कच्चा है क्योंकि इसे पक्का न कराने की वसीयत की गई थी।

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