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महामस्तकाभिषेक विशेष: 35 मंदिरों की नगरी है श्रवणबेलगोला

Published: Dec 12, 2017 04:45:03 pm

श्रवणबेलगोला के इतिहास के विभिन्न सोपान यहां के महत्व को प्रतिपादित करते हैं।

Mahamastakabhisheka special,

श्रवणबेलगोला के इतिहास के विभिन्न सोपान यहां के महत्व को प्रतिपादित करते हैं। यह स्थली प्रारंभ से ही पवित्रदेव भूमि और साधना स्थली रही है। यहां के प्रसंगों को जानना ही एक रोचक अनुभव है। यहां चंद्रगिरी पर्वत, विंध्यगिरी पर्वत, श्रवणबेलगोला नगर के नगर मंदिर, जिननाथपुर प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। श्रवणबेलगोला में कुल 35 मंदिर हैं, जिसमें से चंद्रगिरी पर्वत पर 14 मंदिर, एक गुफा और एक मानस्तम्भ है। विंध्यगिरी पर्वत पर 7 मंदिर, श्रवणबेलगोला नगर में 14 मंदिर हैं। नगर का भंडार बसदि मंदिर और मठ मंदिर सुबह छह बजे से रात्रि आठ बजे तक दर्शन के लिए खुले रहते हैं। इन सबके अलावा सारे मंदिर और दर्शनीय स्थल सुबह छह से शाम छह बजे तक खुले रहते हैं।

 

विंध्यगिरी पर्वत पर चौबीस तीर्थंकर बसदि, ओदेगल बसदि, त्यागद ब्रह्मदेव स्तंभ, चेन्नण्ण बसदि, सिद्धर गुण्डु, अखंड बागिलु, गुल्लिका अज्जी बागिलु, गोम्मटस्वामी मंदिर, सिद्धर बसदि प्रमुख रूप से दर्शनीय हैं। विंध्यगिरी पर्वत पर मंदिरों के पास दीवारों पर बने चित्र भी अपने आप में समृद्ध इतिहास समेटे हैं। यहां चामुंडराय चरण भी दर्शनीय हैं। पर्वत की तलहटी पर ब्रह्मदेव मंदिर और पाश्र्वनाथ मंदिर भी हैं, जिनके दर्शन का लाभ श्रद्धालु उठा सकते हैं। कटवप्र, तीर्थगिरी, ऋषिगिरी, छोटा पहाड़, नाभिक पहाड़, चिक्कबेट्टा आदि नामों से जाना जाने वाला चंद्रगिरी पर्वत समुद्रतल से 3053 फीट ऊंचा है। कहीं-कहीं पर इसकी 3049 फीट ऊंचाई का भी वर्णन मिलता है।इसकी आस-पास के मैदान से ऊंचाई 175 फीट है और कहीं-कहीं पर इसकी 200 फीट ऊंचाई का भी वर्णन मिलता है। चंद्रगिरी पर्वत पर 935 फीट चलने के बाद मंदिरों का परकोटा प्रारंभ होता है।

यहां कुल 14 दर्शनीय बसदियां यानि मंदिर व स्थल, एक गुफा और एक मानस्तम्भ है। इस पर्वत पर 7-9वीं सदी में मंदिरों का निर्माण नहीं था। इस सदी में यहां पर साधु और श्रावक आत्मसाधना के बाद अपना समाधिमरण करते थे। नवीं-10वीं सदी से अलग-अलग राजाओं, मंत्रियों, रानियों और श्रावकों द्वारा मंदिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ। फिर 13वीं सदी के बाद यहां किसी मंदिर का निर्माण नहीं हुआ।

जितने भी मंदिर यहां पर हैं, सभी 13वीं सदी के पहले के बने हुए हैं। इसी पहाड़ी पर आचार्य श्री नेमीचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती के निर्देशन में महामंत्री चामुंडराय ने एक तीर छोड़ा, जो इस पहाड़ी के सामने वाली पहाड़ी पर एक शिला पर जा पहुंचा। वहीं पर कारीगर द्वारा मूर्ति का निर्माण प्रारम्भ हुआ। आज इसी पहाड़ी को विंध्यगिरी पर्वत कहते हैं। चंद्रगिरि पहाड़ी पर आचार्य भद्रबाहु स्वामी का समाधिमरण हुआ और उनके चरणों की सेवा 12 वर्ष तक मुनि चंद्रगुप्त (सम्राट चंद्रगुप्त) ने की। तभी देवों ने मुनि चंद्रगुप्त को आहार करवाया था।

दर्शनीय स्थान
आचार्य श्री भद्रबाहु का समाधिस्थल,बोलती चट्टानें,जन मंगल कलश, चंद्रगिरी पर्वत और बसदियां, विंध्यगिरी पर्वत और बसदियां, जिननाथपुर, जिनालय, समाधिमरण से संबंधित शिलालेख और स्तूपक, श्रवणबेलगोला मठ, गोम्मटेश्वर विद्यापीठ, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्राकृत एवं रिसर्च सेंटर, बह्मचर्य आश्रम, प्राकृत वन एवं प्राकृत भाषा प्रशिक्षण संस्थान, चामुंडराय चरण, गुल्लिका अज्जी प्रतिमा, धर्मच, कला मंदिर, आदिकवि पंप ग्रंथालय,कल्याणी तालाब।

क्रमश: प्रस्तुति: मुनि पूज्यसागर

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