बाल-रूप में होती है कृष्ण की पूजा
वृन्दावन के सप्त देवालयों में प्राचीन परंपरा निभाने के लिए मशहूर राधारमण मंदिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि इस मंदिर में बालस्वरूप में सेवा की जाती है। उनका क हना था श्रीकृष्ण जन्माष्टमी वास्तव में बालकृष्ण की सालगिरह मनाने का पर्व है और बालक की साल गिरह दिन में ही मनाने की परंपरा चली आ रही है क्योंकि रात में बालक को जगाकर उसकी सालगिरह नही मनाई जाती इसलिए ही राधारमण में दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
यह है राधारमण मंदिर स्थित प्रतिमा के अवतरण की कथा
वृन्दावन के इस प्राचीन विग्रह के स्वयं प्राकटय होने के बारे में गोस्वामी ने बताया कि दक्षिण में कावेरी के तट पर श्रीरंगम का विशाल मंदिर है। मंदिर के महंत महान विद्वान अर्चक वेंकट भट्ट थे। चैतन्य महाप्रभु ने अपनी दक्षिण यात्रा के समय वेंकट भट्ट के यहां ही जब चातुर्मास किया था तो वेंकट भट्ट के पुत्र गोपाल भट्ट ने उनके इस प्रकल्प में बहुत अधिक सहयोग किया था। चार माह बीतने के बाद जब चैतन्य महाप्रभु चलने लगे तो गोपाल भट्ट भी उनके साथ जाने को तैयार हो गए। इस पर चैतन्य महाप्रभु ने वेंकट भट्ट को आज्ञा दी कि वे गोपाल भट्ट की शिक्षा दीक्षा पूरी कराकर उन्हें वृन्दावन भेज दें। उन्होंने उनसे यह भी कहा था कि गोपाल भट्ट को वे एक बार नेपाल में गंडकी नदी में स्नान के लिए अवश्य भेजें क्योंकि वहां पर इन्हें प्रभु का अभूतपूर्व आशीर्वाद मिलेगा।
नेपाल की गंडकी नदी से मिले थे 12 शालिग्राम
आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि अपनी शिक्षा दीक्षा पूरी करके अपने माता पिता की आज्ञा लेकर गोपाल भट्ट तीर्थाटन के लिए चल पड़े। भक्ति सिंद्धांत का प्रचार करते करते वह नेपाल पहुंचे। वहां पर गण्डकी नदी में स्नान करने के दौरान एक ऎसी घटना घटी जो प्रत्येक भगवत भक्त को कलियुग में सतयुग का आभास कराती है। नदी में डुबकी लगाते समय उनके उत्तरेय में 12 शालिग्राम आ गए तो गोपाल भट्ट ने उन्हें जल में विसर्जित कर दिया किंतु उन्होंने जैसे ही दुबारा डुबकी लगाई उनके उत्तरीय में न केवल 12 शालिग्राम फिर से आ गए बल्कि उन्हें एक आवाज भी सुनाई पड़ी जिसमें कहा गया था कि वह उन्हे वृन्दावन धाम ले जाएं और वहीं पर उनकी आराधना करें। इसके बाद गोपाल भट्ट इसे भगवत आज्ञा मानकर वृन्दावन ले आए तथा इसी शालिग्राम से शोडशागुल परिमाण नवनीत नीरद श्याम विग्रह अर्थात श्री राधारमण महाराज का दिव्य विग्रह प्रकट हुआ।
दर्शन मात्र से मिलता है मोक्ष
इसी स्वयं प्रकटित दिव्य श्री विग्रह का जन्माष्टमी पर दिन में अनूठा अभिषेक वैदिक मंत्रों के मध्य होता है जिसका अवलोकन कर मोक्ष की प्राप्ति होती है। अभिषेक के समय श्री राधारमण महाराज का विग्रह रजत सिंहासन पर विराजमान होता है। इसके पूर्व वैदिक मंत्रो एवं कीर्तन की मधुर ध्वनि के बीच मंदिर के सेवायतों द्वारा यमुना जल लाया जाता है तथा वैदिक ऋचाओं के मध्य ठाकुर के अभिषेक के पूर्व की क्रियाएं प्रारंभ हो जाती हैं तथा मंदिर का प्रांगण राधारमण हरि गोविन्द जय जय तथा श्री राधारमण लाल की जय से गूंजने लगता है और ठाकुर के विग्रह का वैदिक मंत्रों के मध्य अभिषेक शुरू हो जाता है। चूंकि अभिषेक में 21 मन दूध, दही, शहद, बूरा ,घृत, औषधियों एवं महाऔषधियों से ठाकुर का अभिषेक किया जाता है इसलिए इस कार्यक्रम को सम्पन्न करने में लगभग तीन घंटे लग जाते हैं तथा इस दौरान उक्त पंचामृत का अभिषेक जारी रहता है।
इसीलिए दिन में मनाई जाती है जन्माष्टमी
मंदिर में दिन में जन्माष्टमी मनाए जाने का एक अन्य कारण स्पष्ट करते हुए आचार्य दिनेशचन्द्र गोस्वामी ने बताया कि श्रीमदभागवत में लिखा है कि:- जन्मृक्ष योगे समवेत योषिताम, चकार सूलो रवि सेचनम शति। अर्थात श्रीकृष्ण के जन्म के समय प्रात:काल समागत गोप एवं गोपियों के मध्य उनका अभिषेक किया गया था तथा इसी क्रम का पालन प्रतिवर्ष इस मंदिर में किया जाता है। उनका यह भी कहना था कि चूंकि राधारमणलाल का अवतरण भी प्रात:काल हुआ था इसीलिए इस मंदिर में जन्माष्टमी दिन में मनाते हैं। ठाकुर के अवतरण की खुशी में उन पर न केवल हल्दी मिश्रित दही डाला जाता है बल्कि खिलौने ,वस्त्र, रूपये, मिठाई आदि लुटाई जाती है। इसके बाद गोस्वामी समाज का अनूठा दधिकाना होता है और मंदिर का प्रांगण नन्द के आनन्द भये जय कन्हैयालाल की के तुमुल उदघोष से अनवरत गूंजता रहता है तथा भक्त इस अप्रतिम कार्यक्रम का अवलोकन कर धन्य हो जाता है।