scriptसावन स्पेशल: सरहदों में कभी वीर तो कभी मुस्लिम पीर बने महादेव | Sawan Special: Pak army changed religion of Mahadevji in Veer Bhadreshwar Mahadev Temple, Rajori | Patrika News

सावन स्पेशल: सरहदों में कभी वीर तो कभी मुस्लिम पीर बने महादेव

Published: Aug 03, 2015 09:55:00 am

जबरदस्ती इंसानों का धर्म बदलने की
कहानियां तो बहुत सुनी है, लेकिन कई बार भगवान का भी धर्म जबरन बदल देते हैं

peer bhadreshwar temple in jammu

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दो मुल्कों की लड़ाई के बाद जबरदस्ती इंसानों का धर्म बदलने की कहानियां तो आपने सुनी होंगी, लेकिन भगवान का धर्म बदल दिया जाए ऎसे वाक्ये कम ही मिलते हैं। सरहदों की लड़ाई से इंसान के साथ ही भगवान भी परेशान हैं और इसका उदाहरण है जम्मू-कश्मीर में राजौरी जिले से कुछ दूर एलओसी पर बना वीर भद्रेश्वर मंदिर।

भारत पाकिस्तान की सरहद से सटी सबसे ऊंची पहाड़ी है पीबी यानी पीर बदेश्वर। जबकि इस पहाड़ी का वास्तिवक नाम है वीबी जो महादेव के अवतार वीर भद्रेश्वर के मंदिर की वजह से पड़ा था। सरहदों की लड़ाई ने महादेव को कभी वीर से पीर बनाया तो कभी पीर से वे फिर वीर बन गए। दोनों ही देशों के लिए यह पहाड़ी सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण रखा जाता है और राजौरी के रास्ते भारत में घुसने वाले आतंकियों के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती इसे पार करना है। इसी के चलते पाकिस्तान इस पहाड़ी पर कब्जे के लिए हमेशा प्रयास करता रहा है।



पाक सेना ने बना दिया महादेव को मुस्लिम पीर

आजादी के बाद अक्टूबर 1947 में पाक ने इस पहाड़ी और फिर पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। मंदिर को मस्जिद बना दिया और वीर भद्रेश्वर को पीर बदेश्वर में बदल दिया। एक साल तक चली लड़ाई के बाद भारत ने पाकिस्तान को खदेड़ा और फिर से वीर भद्रेश्वर मंदिर का निर्माण किया। लेकिन स्थानीय लोगों के साथ ही सेना में भी इस जगह को वीबी और पीबी दोनों ही नामों से पुकारा जाता है।

महादेव इसलिए बने थे वीर भद्रेश्वर

राजा दक्ष के यज्ञ में सती के अपमान और उनके भस्म हो जाने से भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने यज्ञ को विध्वंस करने के लिए अपनी जटा जमीन पर पटकी और वीर भद्रेश्वर को उत्पन्न किया। वीर भद्रेश्वर ने यज्ञ को विध्वंस करने के पश्चात यहां विश्राम किया था। राजा कनिष्क ने 141 ईसवी में वीर भद्रेश्वर की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण किया था।

घंटियों से लदे हैं पेड़ और मंदिर

मान्यता है कि इस मंदिर पर घंटी बांधकर जो भी मुराद मांगी जाती है पूरी होती है। लोगों की आस्था इतनी है कि ऊंची पहाड़ी पर यातायात की कोई सुविधा न होने के बावजूद हजारों लोग यहां आते हैं। साल भर में ही पूरा मंदिर और मौजूद पेड़ घंटियों से लद जाते हैं फिर इन घंटियों को एकत्र कर मंदिर में जमा किया जाता है।
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