मंत्र अर्थात मनन करना जब मन और तन किसी शब्द का लगातार मनन करे तो वह मंत्र रूप में परिणित हो जाता है और मानव देह को महाकाश की शक्ति से जोड़ देता है। बीज मंत्र एक ऐसी ही शक्ति है, जिससे मनुष्य स्वयं को ईश्वर के समीप पाता है और शरीर में स्थित चक्रों की शक्ति को जाग्रत कर स्वयं ब्रह्म अहम ब्रह्मस्मि की अवस्था तक पहुंच सकता है। बीज मंत्र देने के अधिकारी एकमात्र सद्गुरु होते हैं। वही इस परम शक्ति को मानव देह में संचारित कर सकते हैं और बीज मंत्र का ज्ञान दे सकते हैं।
बीज मंत्र करते हैं शक्ति को आकर्षित
जिस तरह शिव ने तंत्र शास्त्र में 49 चक्र अक्षरों या वर्णों की व्याख्या की है। उसी तरह मानव शरीर में भी सिर से पैर तक 49 अक्षर या वर्ण होते हैं। ये वर्ण शरीर के सात चक्रों के साथ संयोजित हैं, हमारे शरीर में भी सात चक्रों के मध्य हर चक्र में लगभग 7 चक्र और हैं। इस तरह पूरे चक्रों की संख्या 49 हैं। हमारे शास्त्रों में भी 7 लोकों का जिक्र किया गया है। कहीं-कहीं नौ स्तरों का भी उल्लेख है।
जिस तरह शिव ने तंत्र शास्त्र में 49 चक्र अक्षरों या वर्णों की व्याख्या की है। उसी तरह मानव शरीर में भी सिर से पैर तक 49 अक्षर या वर्ण होते हैं। ये वर्ण शरीर के सात चक्रों के साथ संयोजित हैं, हमारे शरीर में भी सात चक्रों के मध्य हर चक्र में लगभग 7 चक्र और हैं। इस तरह पूरे चक्रों की संख्या 49 हैं। हमारे शास्त्रों में भी 7 लोकों का जिक्र किया गया है। कहीं-कहीं नौ स्तरों का भी उल्लेख है।
देव-देवियों के संदर्भ में देखे तो मां काली के गले में जो मुंड माला है उसमें भी 49 मुंड ही है। इसलिए ये सब इन 49 चक्रों या वर्णों की तरफ ही इशारा करते हैं, जो मानव के उत्थान और उसे ईश्वर तुल्य बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन 49 वर्णों में से कुछ वर्णों में ब्रह्मांड की वो शक्ति ज्यादा ही निहित रहती है, जिसे हमारे प्राचीन ऋषि और योगीजन पहले ही जान चुके थे। उन्हीं वर्णों को संयोजित करके हमारे ऋषियों ने इन शक्तिशाली बीजों का निर्माण किया और इन्हें बीज मंत्र नाम दिया यानी कि जो महाकाश से उस शक्ति को आकर्षित कर सके।
ॐकार में है मंत्रों का मूल
सभी बीजों का निर्माण ॐकार से ही हुआ है। ॐकार ही जगत का मूल बिंदु है। ॐकार शक्ति से कई प्रकार के बीजों का निर्माण हुआ है- जैसे क्रीं, श्रीं, हौ, हीं, गं, भ्रं, त्रीं। इन सभी बीजों के शरीर में 7 चक्रों के साथ भी पूर्ण संबंध होता है। इसका जाप करते हुए हम 7 चक्रों पर अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। देखा जाए तो सभी मंत्र ॐकार से ही पुटीत होते हैं। बीज मंत्र ब्रह्मांड की ऐसी शक्ति है, जिसको पाकर मनुष्य अपने जीवन में समस्त सिद्धियां अर्जित करते हुए ब्रह्म स्वरुप प्राप्त कर अपने जीवन के मुख्य लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
सभी बीजों का निर्माण ॐकार से ही हुआ है। ॐकार ही जगत का मूल बिंदु है। ॐकार शक्ति से कई प्रकार के बीजों का निर्माण हुआ है- जैसे क्रीं, श्रीं, हौ, हीं, गं, भ्रं, त्रीं। इन सभी बीजों के शरीर में 7 चक्रों के साथ भी पूर्ण संबंध होता है। इसका जाप करते हुए हम 7 चक्रों पर अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। देखा जाए तो सभी मंत्र ॐकार से ही पुटीत होते हैं। बीज मंत्र ब्रह्मांड की ऐसी शक्ति है, जिसको पाकर मनुष्य अपने जीवन में समस्त सिद्धियां अर्जित करते हुए ब्रह्म स्वरुप प्राप्त कर अपने जीवन के मुख्य लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।