धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, जिसके चलते हर साल इस तिथि को भगवान शिव (Lord Shiv) और माता पार्वती (Mata Parvati) की विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है।
मान्यता है कि अगर विशेष संयोग में भगवान शिव की पूजा की जाए तो व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होने के साथ ही उस पर भोलेनाथ की विशेष कृपा बरसती है। माना जाता है महाशिवरात्रि के दिन पूजा करने से विशेष फल मिलता है।

ज्योतिष के जानकारों के अनुसार महाशिवरात्रि 2022 पर धनिष्ठा नक्षत्र में परिध योग रहेगा। जिसके पश्चात यानि धनिष्ठा के बाद शतभिषा नक्षत्र रहेगा। इसके अतिरिक्त परिध योग और शिव योग भी रहेगा। मान्यता के अनुसार ये योग शत्रु पर विजय दिलाने में अत्यंत अहम होते हैं। साथ ही, ये भी माना जाता है कि इन नक्षत्रों में की गई पूजा का कई गुना अधिक फल मिलता है।

महाशिवरात्रि 2022 में पंचग्रही योग मकर राशि में बन रहे हैं। इस दिन यहां मंगल, शनि, बुध, शुक्र और चंद्रमा रहेंगे। वहीं लग्न में कुंभ राशि में सूर्य और गुरु की युति रहेगी। राहु वृषभ राशि, जबकि केतु दसवें भाव में वृश्चिक राशि में रहेगा। यह ग्रहों की दुर्लभ स्थिति है और खासी लाभकारी मानी जाती है।
चैतन्य आश्रम के स्वामी प्रत्याक्षानंद महाराज ने प्रतिमा को नदी से बाहर निकलने के बाद 23 नवंबर 1961 को इसकी प्राण प्रतिष्ठा करने के पश्चात 27 नवंबर को मूर्ति का नामकरण पशुपतिनाथ कर दिया गया। इसके बाद यहां मंदिर निर्माण किया गया।
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यहां महादेव का दर्शन करने हर साल सावन माह के दौरान एक लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं। वहीं इस दौरान यहां का मुख्य आकर्षण पूरे माह होने वाला मनोकामना अभिषेक होता है। यहां 101 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर 100 किलो वजनी कलश स्थापित होने के साथ ही उस पर 51 तोला सोने की परत भी चढ़ाई गई है।
प्रतिमा का इतिहास
माना जाता है कि विक्रम संवत 575 ई. में सम्राट यशोधर्मन की हूणों पर विजय के आसपास का समय ही प्रतिमा के निर्माण का है। इसके बाद शायद इस मूर्ति की रक्षा के लिए इसे शिवना नदी में दबा दिया गया था।
माना जाता है कि किसी अज्ञात कलाकार ने प्रतिमा के ऊपर के चार मुख पूरी तरह बना दिए थे, जबकि नीचे के चार मुख निर्माणाधीन थे।
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मंदसौर में मौजूद इस अष्टमुखी पशुपतिनाथ प्रतिमा की तुलना काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से की जाती है। जबकि नेपाल स्थित पशुपतिनाथ चारमुखी हैं। इस प्रतिमा में भगवान शिव के बाल्यावस्था, युवावस्था, अधेड़ावस्था व वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं। इसमें चारों दिशाओं में एक के ऊपर एक दो शीर्ष हैं। प्रतिमा में गंगावतरण जैसी दिखाई देने वाली सफेद धारियां भी मौजूद हैं।
भगवान शिव के अष्ट तत्व के अनुसार प्रतिमा के आठों मुखों का नामांकरण किया गया है। इसके हर मुख के भाव व जीवन काल भी अलग-अलग हैं। ऐसे समझें मुखों को -
1 - शर्व
2 - भव
3 - रुद्र
4 - उग्र
5 - भीम
6 - पशुपति
7 - ईशान
8 - महादेव।