नरक चतुर्दशी को इस मंदिर में करें यमराज की पूजा, नहीं होगी अकाल मृत्यु
पुराणों के अनुसार रूप चौदस पर यमराज के इस मंदिर में दीपदान करने से अकालमृत्यु का भय सदा के लिए दूर हो जाता है

दिवाली से एक दिन पहले आने छोटी दिवाली आती है जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन यमराज की पूजा करने तथा उन्हें दीपदान करने से अकालमृत्यु का भय सदा के लिए दूर हो जाता है। देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 500 किलोमीटर दूर हिमाचल के चम्बा गांव में यमराज की मंदिर स्थित है। यह मंदिर पूरे संसार में यमराज का एकमात्र पूजनीय स्थल है जहां पूजा करने से घर-परिवार से सभी सदस्यों की अकालमृत्यु का योग टल जाता है।
इस मंदिर की खासियत यह है कि यह मंदिर पूरी तरह घर की तरह ही बना हुआ है। इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे यमराज के सचिव चित्रगुप्त का कमरा कहा जाता है। चित्रगुप्त प्रत्येक जीवात्मा के कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं और उन्हें उसी के हिसाब के पुर्नजन्म देते है। यही नहीं, इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार भी है जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे से निर्मित हैं। हर जीवात्मा को उसके कर्मों के अनुसार ही इन दरवाजों से जाने की अनुमति दी जाती है।
रुप चौदस पर जलाते हैं चार बाती वाला दीया
त्रयोदशी की रात कई घरों में परम्परा के अनुसार यमराज के लिए दीपदान किया जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. अखिलेश त्रिपाठी का कहना है कि इस दिन चार बातियों वाले दीपक को जलाने का विधान है। दीये में सरसों का ही तेल उपयोग में लाया जाता है। खास बात ये है कि चारों बातियां एकसूत्र में बंधी हुई होनी चाहिए और उनका मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए। इस तरह के दीपक का जलाना सुखदायक व पुण्य फलदायक होता है।

मिलती है अकाल मौत से मुक्ति
ज्योतिष मर्मज्ञ पं. राजेन्द्र तिवारी के अनुसार त्रयोदशी पर यम के पूजन को लेकर एक कथा प्रचलित है। वैदिक विद्वान द्वारा बताए गए नियम के अनुसार दीपक जलाने पर इसी दिन यमराज के दूतों ने राजा हिम के पुत्र को अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाई थी। पुराणों में उल्लेख है कि राजा हिम के पुत्र की विवाह के चार दिन बाद ही अकाल मौत तय थी। एक ज्योतिषी ने उनकी पत्नी को यह रहस्य बता दिया। पत्नी ने त्रयोदशी की रात विधि-विधान से यमराज का पूजन करके दीपदान किया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने राजा के पुत्र को अकाल मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दिया था, तभी से त्रयोदशी पर यमराज के लिए दीपदान करने की परम्परा चल पड़ी।
कुबेर का भी होता है पूजन
यमराज और कुबेर आपस में भाई-भाई हैं। साधना, तपस्या व प्रभु की कृपा से कुबेर धन के स्वामी बन गए वहीं यमराज को मृत्यु के स्वामी होने का गौरव मिला। त्रयोदशी पर नई-नई वस्तुओं, लक्ष्मी, कुबेर और यमराज के पूजन का विधान है।
इस मंदिर की खासियत यह है कि यह मंदिर पूरी तरह घर की तरह ही बना हुआ है। इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे यमराज के सचिव चित्रगुप्त का कमरा कहा जाता है। चित्रगुप्त प्रत्येक जीवात्मा के कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं और उन्हें उसी के हिसाब के पुर्नजन्म देते है। यही नहीं, इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार भी है जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे से निर्मित हैं। हर जीवात्मा को उसके कर्मों के अनुसार ही इन दरवाजों से जाने की अनुमति दी जाती है।
रुप चौदस पर जलाते हैं चार बाती वाला दीया
त्रयोदशी की रात कई घरों में परम्परा के अनुसार यमराज के लिए दीपदान किया जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. अखिलेश त्रिपाठी का कहना है कि इस दिन चार बातियों वाले दीपक को जलाने का विधान है। दीये में सरसों का ही तेल उपयोग में लाया जाता है। खास बात ये है कि चारों बातियां एकसूत्र में बंधी हुई होनी चाहिए और उनका मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए। इस तरह के दीपक का जलाना सुखदायक व पुण्य फलदायक होता है।

मिलती है अकाल मौत से मुक्ति
ज्योतिष मर्मज्ञ पं. राजेन्द्र तिवारी के अनुसार त्रयोदशी पर यम के पूजन को लेकर एक कथा प्रचलित है। वैदिक विद्वान द्वारा बताए गए नियम के अनुसार दीपक जलाने पर इसी दिन यमराज के दूतों ने राजा हिम के पुत्र को अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाई थी। पुराणों में उल्लेख है कि राजा हिम के पुत्र की विवाह के चार दिन बाद ही अकाल मौत तय थी। एक ज्योतिषी ने उनकी पत्नी को यह रहस्य बता दिया। पत्नी ने त्रयोदशी की रात विधि-विधान से यमराज का पूजन करके दीपदान किया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने राजा के पुत्र को अकाल मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दिया था, तभी से त्रयोदशी पर यमराज के लिए दीपदान करने की परम्परा चल पड़ी।
कुबेर का भी होता है पूजन
यमराज और कुबेर आपस में भाई-भाई हैं। साधना, तपस्या व प्रभु की कृपा से कुबेर धन के स्वामी बन गए वहीं यमराज को मृत्यु के स्वामी होने का गौरव मिला। त्रयोदशी पर नई-नई वस्तुओं, लक्ष्मी, कुबेर और यमराज के पूजन का विधान है।
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