प्रस्तुत है अनूप जालोटा से बातचीत के प्रमुख अंश
करीब तीन दशक बाद आप टीकमगढ़ आए हैंं। कैसा लगा?
शहर का काफी विस्तार हो गया है। श्रोता भी काफी एडुकेट हो गए हैं।
भजन गायिकी में आपके बाद बहुत बड़ी खाई हो गई है। क्या कारण है?
भजन की गहराई में जाने के लिए शास्त्रीय संगीत, रामचरित मानस, श्रीमद्भागवत सहित अन्य भारतीय ग्रंथों का अध्ययन जरूरी है। इन ग्रंथों के अध्ययन से ही भजनों की गहराई मिलती है। भारतीय धर्मग्रंथों के अध्ययन के बिना भजन की गहराई में उतरना कठिन है। धर्मग्रंथों में उल्लेखित कई प्रसंगों से हमें भजनों के लिए शब्द मिलते हैं। ये शब्द ही श्रोताओं के मन को छूते हैं।
आपके भजन तीन दशक बाद भी लोगों की जुबां पर है, जबकि अन्य के भजनों को वह मुकाम नहीं मिला?
सफलता के लिए लोग शॉर्टकट अपनाते हैं? यह सही नहीं है। भजन गायिकी के लिए शास्त्रीय संगीत जरूरी है।
कई क्रिकेटरों ने अपनी एकेडमी बना ली, भजन गायिकी के लिए आप क्या कर रहे हैं?
मैं ने घर पर ही गुरुकुल बनाया है। मुंबई स्थित घर पर ही कई प्रतिभाशाली हैं, उन्हें भजन गायिकी की विधा सिखा रहा हूं। निताशा अग्रवाल जैसे कलाकार रियाज कर जब परिपक्व हो जाती हैं तो उन्हें मंच पर अवसर दिया जाता है। वैसे मैं मुंबई में महीने में मुश्किल से चार-पांच दिन ही रहता हूं। ज्यादातर समय गायिकी के लिए टूर पर ही रहता हूं। लेकिन जब भी मुंबई में रहता हूं, इन बच्चों को भजनों की बारीकियां व रियाज करवाता हूं।
अनूप जालोटा के बाद और कौन?
प्रांजल चतुर्वदी, भिलाई के सत्येन्द्र उपाध्याय, हैदराबादके शरद गुप्ता अच्छा गाते हैं। इनमें काफी संभावनाएं हैं।