ऊंचे पहाड़ की गणना बुंदेलखंड के बड़े किलो में होती थी। यह किला कांफ ी ऊंचा बड़े विस्तार में एवं सूर्य पर कोटि के अंदर अधिक रमणियों की मार से सुरक्षित था। गिरीदुर्ग होने पर भी महाराजा ने इसे जलदुर्ग बना दिया था। किला दरवाजे के दक्षिणी भाग में संलग्न गहरा समुद्र सा ग्वालसागर तालाब है। जो पूर्व में किले को घेरे हुए हैं। उत्तर में खिड़की दरवाजे तक भरा रहता था उत्तर पश्चिम में धर्म सागर तालाब बस्ती एवं किले को घेरे हुए रहता था पहाड़ी अखंड आंखों को जल मंगल करते हुए धर्मसागर किला दरवाजे के बाहर मदन बीरबल बलसागर बांध को हिरोरें मारता रहता था। किले के चारों ओर याद जलराशि इसे जलदुर्ग में परिवर्तित किए रहती थी। इसलिए यह क्लास शत्रुओं के लिए हमेशा एक चुनौती बना रहा।
तोप को देखने आते है लोग,उसकी गर्जनाहट से कांपते थे शत्रु
किले में रखी तोप को बल्देवगढ़ की तोप के नाम जाना जाता है। इस तोप से वर्ष 1972 में विशाल विस्फ ोट हुआ था। किले में पुरानी युद्ध सामग्री रखे होने से किसी अज्ञात व्यक्ति ने बीड़ी जलाकर फेक दी थी। जिसके कारण यह विस्फोट वर्ष कई लोगों की जानें गई थी। जिसके बाद थाना और तहसील सहित अन्य कार्यालयों को दूसरे स्थान पर स्थापित करने के आदेश दिए थे। इसके साथ नगर के लोगों ने बताया कि एक भुमानी शंकर तोप जो राजा के समय एक बार चली थी। इसकी गर्जनाहट इतनी तेज थी कि सत्रु भी इससे थर-थर कांपते थे।