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बल्देवगढ़ की तोप और युद्ध भंडारण गृह है बना आकर्षित

locationटीकमगढ़Published: Jul 21, 2018 01:26:18 pm

Submitted by:

akhilesh lodhi

जिले के बल्देवगढ़ में ओरछा रियासत काल के समय सबसे सुरक्षित स्थान है बल्देवगढ़ का किला

Baldevgarh Cannon War Storage Home Attract

Baldevgarh Cannon War Storage Home Attract

टीकमगढ़.जिले के बल्देवगढ़ में ओरछा रियासत काल के समय सबसे सुरक्षित स्थान है बल्देवगढ़ का किला। महाराजा विक्रमाजीत सिंह ने युद्ध सामग्री भंडारण और सेना के अध्यक्ष के लिए रियासत यह स्थान था। जिसके बाद यहां से दुर्ग का निर्माण कराया गया था। महाराजा ने मराठों के आतंक और लूटमारी से परेशान होकर राजधानी ओरछा से हटाकर टीकमगढ़ में स्थापित की थी। जहां युद्ध सामग्री का भण्डारण और तोप आक र्षित बनी हुई है।
नगर के बुजुर्गो का कहना है कि जब महाराजा विक्रमादित्य सिंह ने मराठों के आतंक और लूटमारी से परेशान होकर राजधानी ओरछा से हटाकर टीकमगढ़ में स्थापित कर राज्य की सैनिकों के लिए सुरक्षित स्थान की खोज बल्देवगढ़ के पहाडों पर की की गई। यह स्थान पहाड़ों और जंगल के मध्य बसा बांध ग्राम (आज बल्देवगढ़) सुरक्षा की हर कसौटी पर खरा पाया गया। इसके बाद महाराजा ने यहां पर 55 से 70 एकड़ में सिंधुदुर्ग किला का निर्माण कराया। दुर्ग का उपयोग युद्ध सामग्री भंडारण और सेना अभ्यास के लिए किया जाता था।
ऊंचे पहाडों के बीच बना है किला
किले को देखकर ऐसा लगता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने वास्तु के अनुसार किला का प्रथम दरवाजा पहाडों के बीच पश्चिमी दिशा में बनाया गया। दूसरा दरवाजा सामान्य जन एवं राज्य कर्मचारियों की आवाजाही के लिए बस्ती और किले के मैदान की ओर उत्तर दिशा में बनाया गया है।

ऊंचे पहाडों की गणना बुंदेलखण्ड में होती है, दुश्मन रहते थे दूर
ऊंचे पहाड़ की गणना बुंदेलखंड के बड़े किलो में होती थी। यह किला कांफ ी ऊंचा बड़े विस्तार में एवं सूर्य पर कोटि के अंदर अधिक रमणियों की मार से सुरक्षित था। गिरीदुर्ग होने पर भी महाराजा ने इसे जलदुर्ग बना दिया था। किला दरवाजे के दक्षिणी भाग में संलग्न गहरा समुद्र सा ग्वालसागर तालाब है। जो पूर्व में किले को घेरे हुए हैं। उत्तर में खिड़की दरवाजे तक भरा रहता था उत्तर पश्चिम में धर्म सागर तालाब बस्ती एवं किले को घेरे हुए रहता था पहाड़ी अखंड आंखों को जल मंगल करते हुए धर्मसागर किला दरवाजे के बाहर मदन बीरबल बलसागर बांध को हिरोरें मारता रहता था। किले के चारों ओर याद जलराशि इसे जलदुर्ग में परिवर्तित किए रहती थी। इसलिए यह क्लास शत्रुओं के लिए हमेशा एक चुनौती बना रहा।
तोप को देखने आते है लोग,उसकी गर्जनाहट से कांपते थे शत्रु
किले में रखी तोप को बल्देवगढ़ की तोप के नाम जाना जाता है। इस तोप से वर्ष 1972 में विशाल विस्फ ोट हुआ था। किले में पुरानी युद्ध सामग्री रखे होने से किसी अज्ञात व्यक्ति ने बीड़ी जलाकर फेक दी थी। जिसके कारण यह विस्फोट वर्ष कई लोगों की जानें गई थी। जिसके बाद थाना और तहसील सहित अन्य कार्यालयों को दूसरे स्थान पर स्थापित करने के आदेश दिए थे। इसके साथ नगर के लोगों ने बताया कि एक भुमानी शंकर तोप जो राजा के समय एक बार चली थी। इसकी गर्जनाहट इतनी तेज थी कि सत्रु भी इससे थर-थर कांपते थे।
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