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अपनी भावनाओं को वश में रखना ही सच्चा ब्रह्मचर्य है

locationटीकमगढ़Published: Sep 24, 2018 11:28:53 am

Submitted by:

akhilesh lodhi

दशलक्षण महापर्व का दसवें दिन समापन किया गया

Cultural program in Jain temple

Cultural program in Jain temple

टीकमगढ़.दशलक्षण महापर्व का दसवें दिन समापन किया गया है। जिसको लेकर रविवार को सुबह से ही जैन मंदिरों में भीड़ देखी गई है। इसके साथ ही शहर के जिनालयों में भगवान का अभिषेक किया गया। इसके साथ ही अनंत चतुर्दशी का पावन पवित्र पर्व पर लोगों में उत्साह देखा गया है। इस दौरान कार्यक्रम में प्रवचन कर भावनाओं को अपने वश में करने का संदेश दिया है। रविवार को दशलक्षण महापर्व के समापन पर पंडित सुनील कुमार शास्त्री द्वारा ब्रहचारी धर्म के बारे में कहा कि अपनी भावनाओं को अपने वश में रखना ही सच्चा ब्रह्चार्य धर्म का पालन करना है। व्यक्ति अपनी बासनाओं को अपने नियंत्रण में नहीं रख पाता है। कामसेवन का मन से वचन से शरीर से परित्याग करके अपने आत्मा में रमना ब्रह्मचर्य है । संसार में सभी वासनाओं में तीव्र कामवासना है। इसी कारण अन्य इंद्रियों का दमन करना तो बहुत सरल है। किन्तु कामवासना की साधन भूत काम इंद्रिय का वश में करना बहुत कठिन है। छोटे-छोटे जीव जंतुओं से लेकर बड़े से बड़े जीव तक में विषयवासना स्वाभाविक ;वैभाविकद्ध रूप से पाई गई है। सिद्धांत ग्रन्थों ने भी मैथुन स्ंज्ञा एकेन्द्रिय जीवों में भी प्रतिपादन की है कामातुर जीव का मन अपने वश में नहीं रहता। उसकी विवेकशक्ति नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। पशु तो कामवासना के शिकार होकर माता, बहिन, पुत्री,स्त्री का भेदभाव करते ही नहीं। सभी को समान समझ कर सबसे अपनी कामवासना तृप्त करते रहते हैं। कवि ने कहा दिन में उल्लु को दिखाई नहीं देता और मनुष्य को रात में नहीं दिखाई देता। कामांध पुरुष न रात में कुछ देखता है न दिन में। उसके नेत्र कामवासना के कर्तव्य अकर्तव्य को कुछ नहीं देख पाते। इस कारण कामदेव पर विजय प्राप्त करके ब्रह्चार्य व्रत धारण करना बहुत कठिन है।


प्रताप की ब्रह्चार्य है
नेमिनाथ तीर्थंकर अपना विवाह करने राजा उग्रसेन के घर बड़ी भारी बारात के साथ पधारे।अहिंसा व्रत के कारण अपनी बारात में आए हुए मांस भक्षी लोगों के भोजन के लिए एकत्र किये गये पशु-पक्षियों पर करुणा करके उनको छोड़ दिया। अति रूपवती,नवतरुणी राजकुमारी के साथ विवाह करना त्याग कर साधु बन गए। देवागना समान सुंदरी राजमती ने नेमिनाथ से अपने साथ विवाह करने की अनेक प्रार्थनाए की। ब्रह्चारी नेमिकुमार पर कामदेव का रंचमात्र भी प्रभाव न हुआ। अतिशय रूपवान सुदर्शन सेठ स्वदारसंतोष अपनी विवाहित स्त्री के सिवाय अन्य सब स्त्रियों से मैथुन का त्याग व्रत के धारक थे। उनके सुंदर रूप पर आसक्त होकर रानी ने छल से अपनी धूर्त दासी के द्वारा उनको अपने महल में बुलवा लिया। अपनी कामाग्नि शांत कर देने के लिए सुदर्शन सेठ से बड़ी विनय प्रार्थना की।

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