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टीकमगढ़

टीकमगढ़ में आदिवासी के पास नहीं थे बेटी के इलाज के पैसे, मासूम की मौत

आर्थिक तंगी से जूझ रहा आदिवासी नहीं करा सका उपचार, पहले भी खो चुका हैं एक बेटे को

टीकमगढ़Sep 15, 2019 / 09:06 pm

anil rawat

Eclipse on plans

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टीकमगढ़. शासन-प्रशासन अंतिम छोर तक खड़े व्यक्तियों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने का कितना भी दंभ क्यों न भर रही हों, लेकिन हकीकत इससे कहीं अधिक जुदा हैं। आलम यह हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी गरीब समुचित उपचार के अभाव में अपने बच्चों की मौत देखने के लिए बेवस हैं। जतारा के ग्राम वैदपुरा में आर्थिक तंगी से जूझ रहे एक आदिवासी के पास पैसे की व्यवस्था न होने से वह अपनी 3 वर्ष की मासूम बेटी का उपचार नहीं करा सका और उसकी मौत हो गई।


जतारा जनपद की ग्राम पंचायत वैदपुर निवासी रुपराम आदिवासी के पास न जमीन हैं न आय का कोई जरिया। किसानों के खेतों में मजदूरी कर रूपराम अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा हैं। पिछले एक सप्ताह से रुपराम की 3 वर्ष की बेटी सरोज बुखार से पीडि़त थी। रूपराम ने उसे गांव के ही किसी डॉक्टर को दिखाया और सरोज को थोड़ा आराम हो गया। सरोज को बुखार से आराम मिलने पर वह खेलने के लिए घर से बाहर निकले और दरवाजे पर गिर पड़ी। सरोज के दरवाजे पर गिरने से उसके सिर में गहरी चोट आई और खून निकलने लगा।

 

अंदर ही अंदर फैला इंफेक्शन: इस पर रूपराम और उसकी पत्नी ने उसके सिर में घर में रखी पुरानी दवाओं को लगा दिया और खून बहना बंद हो गया। वहीं लगभग तीन दिन पूर्व जब सरोज ने सिर दर्द की शिकायत की तो रूपराम ने सोचा चोट के कारण हो रहा होगा। लेकिन जब सरोज लगातार सिर दर्द की बात कहती रहीं तो रूपराम ने उसे दिखाने का विचार किया, लेकिन पैसे न होने के कारण वह कहीं नहीं जा सका। वहीं रविवार को जब इसी समस्या के चलते सरोज की हालत खराब हुई तो वह गांव से ही कुछ लोगों से पैसे की व्यवस्था कर सरोज को लेकर जिला अस्पताल पहुंचा। दोपहर 12 बजे के लगभग जिला अस्पताल पहुंची सरोज का डॉक्टरों ने उपचार शुरू किया, लेकिन अंदर ज्यादा इंफेक्शन हो जाने के कारण उसकी मौत हो गई।

 

नहीं था पैसा: बच्ची की मौत के बाद रूपराम का कहना था कि बेटी तीन-चार दिन से सिर दर्द की बात कह रही थी, लेकिन रुपयों की व्यवस्था न होने से वह दिखाने के लिए टालता रहा। उसे क्या पता था कि अंदर ही अंदर उसे इतनी समस्या हो गई हैं। जिला अस्पताल आए रूपराम के पास तो घर वापस जाने के भी पैसे नहीं थे। इस पर कुछ लोगों ने उसकी मदद की और जिला अस्पताल से शव वाहन भी उपलब्ध कराया। शव वाहन ले जाने के लिए जब रूपराम से उसका बीपीएल कार्ड मांगा गया तो उसने बताया कि उसका कार्ड तो बना ही नहीं हैं।


बीमारी से हो चुकी है बेटे के मौत: रूपराम के साथ गरीबी के दंश की यह पहली घटना नहीं हैं। इसके पूर्व उसके 6 माह के बेटे मुकेश की भी बीमारी से मौत हो गई थी। रूपराम का कहना हैं कि उसका भी मलेरिया बिगड़ गया था। डॉक्टरों ने उसे बाहर ले जाने की सलाह दी थी, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। रूपराम के साथ हुई यह घटना शासन की तमाम योजनाओं पर प्रश्र खड़े कर रही हैं।
कहते हैं अधिकारी: यह गंभीर मामला हैं। इस मामले में तहसीलदार को भेज कर जांच कराई जाएगी। रुपराम के परिवार की जो भी यथा संभव मदद होगी की जाएगी। यदि रूपराम ने बीपीएल सूची में नाम जोडऩे पहले आवेदन दिया होगा, तो उसका भी पता किया जाएगा।- प्रमोद सिंह गुर्जर, एसडीएम, जतारा।

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