अब वह समय फिर गया है, जब बुंदेलखण्ड में बेटों को ही कुल दीपक माना जाता था। अब बेटियां भी कुलदीपक बन रही है। समय के साथ शिक्षा के प्रसार एवं शासन की तमाम योजनाओं के बाद लोगों की सोच में यह बड़ा परिर्वतन दिखाई दे रहा है। बेटों के लिए बच्चों की लंबी कतार न लगाकर लोग एक या दो बेटी होने पर ही परिवार नियोजन अपना रहे है और इन बेटियों को ही बेटों की तरह सारी सुख-सुविधाएं देकर उनके लालन-पालन की व्यवस्था कर रहे है।
इनके लिए बेटी ही सबकुछ है
निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर ब्लॉक के ग्राम मनिया निवासी संतोष और रीना अहिरवार ने एक बेटी के बाद ही परिवार नियोजन अपना लिया है। उन्होंने इसका नाम सरस्वती रखते हुए इसको उच्च शिक्षित करने की बात कही है। संतोष कहते है कि बेटे और बेटी में क्या फर्क है। बेटी भी तो उनका ही खून है, यही उनका नाम आगे बढ़ाएंगी। उनका कहना है कि पति-पत्नी ने पहले ही तय कर लिया था कि चाहे बेटा हो या बेटी, एक ही बच्चा करेंगे। ऐसी ही सोच रजनी और उनके पति प्रवीण सेन की है। इनकी रिमी और कृष्णा दो बेटियां है और यही उनके लिए सब कुछ है। प्रवीण कहते है कि बेटा हो या बेटी सब ईश्वर की देन है, फर्क हमारी सोच का है। उनका कहना है कि वह बेटियों को अच्छा पढ़ाकर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते है। रिमी जहां पुलिस में जाना चाहती है तो कृष्णा ने आइएएस बनने की बात कही है।
1 हजार से अधिक ऐसे परिवार
लोगों की बदलती सोच को लेकर महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी बृजेश त्रिपाठी का कहना है कि लोगों की सोच में तेजी से बदलाव आ रहा है। उनका कहना है कि लाड़ली लक्ष्मी योजना के बाद इस सोच में काफी बदलाव देखा गया है। जिले में अब तक 65 हजार बेटियां लाड़ली बन चुकी है। इसमें दो हजार से अधिक परिवारों ने एक या दो बेटियों के बाद परिवार नियोजन अपना लिया है। वहीं दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन अपनाने वालों की संख्या 35 हजार से ऊपर है। उनका कहना है कि बेटियों को लेकर बदल रही सोच बुंदेलखण्ड में हो रहे बदलाव का ***** है।