टीकमगढ़

कैलाश मड़वैया को मिला शिक्षा और साहित्य का पद्मश्री सम्मान

बुंदेली और बुंदेलखण्ड के विकास की करेंगे सरकार से मांग

टीकमगढ़Jan 27, 2019 / 01:00 pm

anil rawat

Padmashri Samman

टीकमगढ़. उत्तर प्रदेश के बानपुर में जन्में और टीकमगढ़ जिले में पले-बड़े कैलाश मड़वैया को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर देश के सबसे बड़े पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। कैलाश मड़वैया ने यह सम्मान मिलने के बाद कहा कि वह सरकार से बुंदेलखण्ड और बुंदेली के विकास की मांग रखेंगे। विदित हो कि पूर्व शास्त्रीय संगीत के लिए ध्रुपद गायिका असगरी बाई और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए कृष्ण कुमार को भी यह सम्मान मिल चुका है।
बानपुर में जन्मे कैलाश मड़वैया का बचपन टीकमगढ़ में ही बीता। यहां से बीएससी तक शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने यहां पर व्याख्याता एवं असिस्टेंट डिप्टी डायरेक्टर ऑफ एग्रीकल्चर के पद पर रह कर काम भी किया। टीकमगढ़ जिले से गहरा संबंध रखने वाले कैलाश मड़वैया को 26 जनवरी को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

बुंदेली के लिए कर रहे काम: वर्तमान में कैलाश मड़वैया लंबे समय से भोपाल में रह कर बुंदेली भाषा के लिए काम कर रहे है। कैलाश मड़वैया वर्तमान में अखिल भारती बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद के अध्यक्ष है। उनके द्वारा ओरछा में प्रतिवर्ष बुंदेली भाषा के लिए तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। कैलाश मड़वैया को यह सम्मान मिलने पर जिले के साहित्यकारों ने उन्हें बधाईयां दी है।
बुंदेली एवं बुंदेलखण्ड के लिए हो काम: शिक्षा और साहित्य का प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान मिलने के बाद कैलाश मड़वैया का कहना है कि वह सरकार से मांग करते है कि जल्द ही बुंदेलखण्ड और बुंदेली के विकास के लिए काम किया जाए। उनका कहना था कि अभी राजनैतिक कारणों के चलते देश की 22 भाषाओं को 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया है। जबकि बुंदेली और भोजपुरी जो देश की सबसे बड़ी क्षेत्रीय भाषाएं, उन्हें इसमें शामिल नही किया गया। बुंदेलीभाषा देश के बड़े भूभाग पर बोली जाने वाली भाषा है। 6 करोड़ से अधिक लोग बुंदेली भाषा बोलते है। वहीं उन्होंने बुंदेलखण्ड के विकास, सिंचाई योजनाओं के लिए सरकार से काम करने की मांग की। उनका कहना था कि देश हृदय स्थल बुंदेलखण्ड का देश की आजादी, साहित्य, संस्कृति में बड़ा योगदान है। लेकिन यहां के बलिदानों को सरकारों ने भुला दिया है। उन्होंने बानपुर में राजा मर्दन सिंह की प्रतिमा स्थापित करने, छत्रसाल की प्रतिमा स्थापित कराने की मांग की।

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