चारों आश्रमों में गृहस्थ सबसे श्रेष्ठ: राधेश्याम महाराज ने कहा कि चारों आश्रमों में सबसे श्रेष्ठ गृहस्थ आश्रम ही है। इस पर ही तीनों आश्रम आश्रित होते है। गृहस्थ आश्रम के श्रेष्ठ इसलिए भी है क्यों कि ऋषि-मुनियों ने भी इसे धारण किया है। ईश्वर का अवतार भी गृहस्थ आश्रम में ही हुआ है। उन्होंने कहा कि गृहस्थ आश्रम की औषधि है सत्संग है। सत्संग करने से गृहस्थ आश्रम स्वर्ण नही हो तो नरक बन जाता है। उन्होंने शिव विवाह के माध्यम से सत्संग का महात्व बताते हुए कहा कि भगवान शिव का प्रथम विवाह ब्रह्मपुत्र राजा की पुत्री सती के साथ हुआ। एक बार शिव, सती को लेकर सत्संग के लिए कुंभज ऋषि के यहां गए। लेकिन सती के घर में कभी सत्संग न होने से, वह कुंभज ऋषि के प्रति श्रद्धा का भाव न ला सकी और अभिमानवश सत्संग का सत्कार भी नही किया। शिव द्वारा सचेत करने के बाद भी उन्होंने उपेक्षा की और कथा श्रवण नही की। इसके बाद कैलाश वापस जाते समय सती ने शिव के समझाने के बाद भी माता सीता का रूप रखकर वन में सीता की खोल कर रहे श्रीराम की परीक्षा ली। इससे भगवान शिव ने सती का त्याग कर दिया। इसके बाद सती ने अपने पिता के यहां यज्ञ में जाकर शिव अपमान को सहन न कर सकी और योगाग्रि में खुद को भस्म कर दिया। राधेश्याम महाराज ने कहा कि सत्संग न करने का ही यह परिणाम था। इसके बाद सती को हिमालय के यहां दूसरा जन्म लेना पड़ा और देवर्षि नारद को अपना गुरू बनाकर कठिन तपस्या कर शिव को प्राप्त करना पड़ा।