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बेटा एसडीओपी, पिता आज भी तोड़ते हैं तेंदूपत्ता, बोले-इस पर मुझे गर्व

locationटीकमगढ़Published: May 23, 2022 08:34:07 pm

Submitted by:

Hitendra Sharma

तेंदूपत्ता तोड़कर लाए थे पीएससी की किताबें, एसडीओपी निवाड़ी संतोष पटेल के पिता जानकी प्रसाद आज भी करते हैं तेंदूपत्ता का संग्रहण। तड़के चार बजे ही चले जाते हैं जंगल।

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निवाड़ी. पन्ना जिले के अजयगढ़ क्षेत्र के देवगांव निवासी जानकी प्रसाद पटेल के संघर्ष की कहानी बॉलीवुड फिल्मों के किसी खुद्दार पिता की तरह ही है। उन्होंने तेंदूपत्ता तोड़कर बेटे को पुलिस अफसर बनाया।

अब बेटा भरपूर मदद कर रहा है, लेकिन इसके बाद भी उनके माता-पिता ने तेंदूपत्ता तोडऩा नहीं छोड़ा। पहले की तरह ही वे तड़के 4 बजे से जंगल जाते हैं। तेंदूपत्ता तोड़कर घर लाते हैं तो पूरा परिवार दिनभर गड्डिया बनाता है। शाम को वे इन गड्डियों को तेंदूपत्ता फड़ में जाकर जमा कर देते हैं। उन्हें तेंदूपत्ता तोडऩे में आज भी किसी प्रकार की झिझक नहीं होती है। वे कहते हैं कि मुझे इसका गर्व है कि हमने तेंदूपत्ता तोड़कर बेटे को अफसर बनाया।

जानकी प्रसाद बताते हैं, उन्होंने तेंदूपत्ता तोडकऱ, प्लांटेशन में मजदूरी करके, शहर इकट्ठा करके अपने बेटे को पढ़ाया और वह पुलिस विभाग का बड़ा अफसर बन गया। बेटा संतोष पटेल निवाड़ी जिले में एसडीओपी है। वे कहते हैं कि बेटा पर्याप्त रुपए दे रहा है। बुढ़ापे में घर बैठेंगे तो बीमारियां घेर लेंगी। जिंदगीभर मेहनत करके कमाया है तो अब घर बैठे कैसे रहें। तेंदूपत्ता बेचने से खर्च भर के लिए पर्याप्त आमदनी हो जाती है। उन्होंने कहा, मुझे ऐसा करने में कोई शर्म या लज्जा महसूस नहीं होती। गर्व है कि मैंने अपनी मेहनत के पैसों से अपने बच्चे को इस लायक बनाया। जब तक मेरे हाथ-पैर चलते रहेंगे, मैं अपनी मेहनत मजदूरी करता रहूंगा।

जानकी प्रसाद के बेटे संतोष का विवाह बीते साल ही हुआ था। विवाह कार्यक्रम के बाद देवी पूजा के दौरान उनके खेत तक सड़क नहीं होने के कारण वे दुल्हन को देवी पूजन के लिए साइकिल पर बिठाकर पगडंडी के सहारे खेतों तक पहुंचे थे। जिससे वे अचानक सुर्खियों में आ गए थे।

निवाड़ी जिले में पदस्थ डीएसपी संतोष पटेल पुराने दिनों को याद कर थोड़ा भावुक हो जाते हैं। वे कहते हैं कि हमारा पूरा परिवार तेंदूपत्ता तोडऩे के साथ ही वनोपज के संग्रहण व मजदूरी कर रुपए कमाता है। गांव के लोगों के बीच अधिक तेंदूपत्ता तोडऩे की प्रतिस्पर्धा रहती थी। वर्ष 2015 में तेंदूपत्ता के वि₹य से मिले 5 हजार रुपए से मैं पीएससी की किताबें खरीदकर लाया था। बिना किसी कोचिंग के घर में ही काम करने के बाद कुछ समय बचाकर तैयारी करते हुए 15 महीनों में ही डीएसपी बन गया था। वे कहते हैं जमीनी स्तर से उठकर आज इस मुकाम तक पहुंचा हूं। डीएफओ उत्तर वन मंडल गौरव शर्मा बताते हैं कि एक सप्ताह की मेहनत में एक तेंदूपत्ता संग्राहक को औसतन 5-6 हजार रुपए मजदूरी मिल जाते हैं। बोनस का अलग से वितरण किया जाता है। तेंदूपत्ता बेचकर जिले के हजारों परिवार अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं।

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