अंशुल खरे और डॉ मेघा खरे की एक मात्र संतान अमायरा बिटिया है। अमायरा के जन्म के बाद ही दोनों ने तय कर लिया था कि अब यही उनका जीवन होगा। आज अमायरा 8 साल की हो गई है और दोनो पूरा ध्यान उसी पर दे रहे है। अंशुल खरे कहते है कि वैसे उनके घर में भी बेटियों को लेकर किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं है, लेकिन परिजनों की इच्छा जरूर थी कि कम से दो बच्चें (एक बेटा) हो, लेकिन हम दोनों की सोच को समझ में आने के बाद अब यह बात नहीं होती है। उनका कहना है कि आज सरकार भी इसी सोच से काम कर रही है।
बेटियों के लिए तमाम योजनाएं चल रही है। अब समय भी बदल गया है, आखिर बेटियां क्या नहीं कर सकती है। मेरी पत्नी भी डॉक्टर है। दिन भर अस्पताल में रहने के बाद घर देखती है और तनक भी सूचना पर दौड़कर अपने माता-पिता के पास उनका दुख-दर्द सांझा करने पहुंच जाती है। वहीं डॉ मेघा खरे का कहना है कि वह दूसरों को पूरे दिन बेटा-बेटी में फर्क न होने की समझाईश देती है और खुद ही यदि भेद करेंगी तो उनका दूसरो को सीख देने का क्या मतलब। यह तो बात बिलकुल ही गलत होगा। उनका कहना है कि हमने पहले ही तय कर लिया था कि एक ही बच्चा करेंगे, भगवान ने बेटी दी, इससे अच्छा क्या हो सकता है। अंशुल और मेघा कहते है कि जब पूरे दिन की थकान के बाद घर पहुंचते है और अमायरा आकर सीने से लगती है तो सारा तनाव और थकान दूर हो जाती है। उसकी बातों में हर टेंशन खत्म हो जाती है।