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टीकमगढ़

तीसरी पीढ़ी के कलाकार जीवित रख रहे परंपरा, इनके उत्पादों की विदेश तक मांग

ओरछा. समय के साथ लोग पारंपरिक चीजों को भूलते जा रहे हैं। आज बच्चे मोबाइल गेम तक ही सीमित रह गए हैं। उन्हें अपनी परंपराओं से परिचित कराने के लिए राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम के तहत कार्यशाला आयोजित की जा रही है।
ऐसे में शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में गुरुवार से इसका शुभारंभ किया गया। यहां पर टेराकोटा का काम करने वाले तीसरी पीढ़ी के कलाकारों ने बच्चों को मिट्टी के साथ ही कागज सहित अन्य चीजों से खिलौने बनाना सिखाया।

टीकमगढ़Oct 25, 2024 / 05:19 pm

Pramod Gour

बच्चों ने चलाया चाक

बच्चों ने चलाया चाक

मोबाइल से दूर होकर अपनी परंपराओं को समझे बच्चे, इसके लिए आयोजित की जा रही कार्यशाला

ओरछा. समय के साथ लोग पारंपरिक चीजों को भूलते जा रहे हैं। आज बच्चे मोबाइल गेम तक ही सीमित रह गए हैं। उन्हें अपनी परंपराओं से परिचित कराने के लिए राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम के तहत कार्यशाला आयोजित की जा रही है।
ऐसे में शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में गुरुवार से इसका शुभारंभ किया गया। यहां पर टेराकोटा का काम करने वाले तीसरी पीढ़ी के कलाकारों ने बच्चों को मिट्टी के साथ ही कागज सहित अन्य चीजों से खिलौने बनाना सिखाया।
इस प्रदर्शनी में तीसरी पीढ़ी के आर्टिस्ट शामिल हुए। कम मुनाफे के बावजूद भी इस परंपरा को जीवित रखने वाले इन कारीगरों की माने तो उनके उत्पादों की डिमांड विदेशों तक में है। ओरछा आने वाले पर्यटक उनके सामान को सबसे पहले पसंद करते हैं। इस आयोजन में एलडीसी अजय कुमार चौधरी, एमटीएम अरुण कुमार मुख्य रूप से उपस्थित रहे। वहीं अध्यक्षता संकुल प्राचार्य एसके गुप्ता ने की। उन्होंने कहा कि ओरछा आने वाले पर्यटक उनके सामान को सबसे पहले पसंद करते हैं।
हस्तशिल्प सेवा केंद्र ग्वालियर के सहायक निर्देशक संदीप पटेल ने बताया कि बच्चों को अपनी परंपरा से जोडऩे एवं मोबाइल से दूर रखने के लिए यहां पर तीन दिवसीय हस्तशिल्प प्रशिक्षण एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें स्टेट अवार्ड से सम्मानित प्रशिक्षिकों द्धारा बच्चों हैंडलूम, टेराकोटा, पेपरमेशी, हेंडपेंङ्क्षटग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
एक दिन में तैयार करता हूं 5 से 10 आयटम

यहां पर पहुंचे ओरछा के शुभम दुबे का कहना था कि बच्चे आज भले ही मोबाइल में बिजी हों, लेकिन जब वे मेरे पेपर टॉयज या पेंङ्क्षटग देखते हैं तो खरीदे बिना रह नहीं पाते। वह पेपर से डमरू, तलवार, धनुष, चकरी, बैलगाड़ी सहित अन्य सामान बनाते हैं। उनका कहना था कि वह एक दिन में 5 से 10 आयटम तैयार कर लेते हैं, हालांकि समय के साथ अब इनकी मांग घट गई है। उनका कहना था कि बुंदेली पेंङ्क्षटग को बच्चे बहुत पसंद कर रहे हैं। जिसमें पर्यटन नगरी की ऐतिहासिक इमारतों को बॉल पेपर पर उकेर कर दिखाया गया।
बच्चों ने चलाया चाक, बनाए बर्तनकार्यक्रम में टेराकोटा, एम्ब्रायडरी, गुडिय़ा, पेंङ्क्षटग, हैंडलूम से जुड़े आर्टिस्ट शामिल हुए। इन्होंने बच्चों को इन चीजों को बनाने का डेमोस्ट्रेशन दिया। वहीं बच्चों ने यहां पर लाई गई चाक को खुद चलाकर मिट्टी के बर्तन बनाना सीखा। इसमें कई उत्पाद ऐसे थे, जो दशकों पहले चलते थे। उन्हें देख लोग पुरानी यादों में खो गए। इसका बच्चों ने खूब लुफ्त उठाया।
यह कलाकार हुए शामिल

हस्त शिल्प में हरचरण लाल, पेपर पेंङ्क्षटग में शुभम दुबे, टेराकोटा में देवीदीन प्रजापति एवं प्रतीक नागवंशी शामिल हुए। यह सभी ऐसे कलाकार थे जिनके यहां पीढिय़ों से यह काम किया जा रहा है। उनका कहना था कि बच्चों को इस ओर लाने का यह प्रयास सराहनीय है।

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