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टीकमगढ़

तेरह दशक पहले बावडियां बुझाती थी शहर की प्यास, अब कूडादान में तब्दील, उपेक्षा से जर्जरहाल में है बावडियां

मऊचुंगी रोड की बावडी

टीकमगढ़Jun 03, 2024 / 07:29 pm

akhilesh lodhi

मऊचुंगी रोड की बावडी

मऊचुंगी रोड की बावडी

रियासत काल में राजा महाराज ने बनवाई थी २० बावडी और चौपरा

टीकमगढ़.कभी शहर की प्यास बुझाने वाली बावडियां आज कूडादान बनकर रह गई हैं। यह बावडी किसी समय शहर और जल संरक्षण की दृष्टिकोण से समृद्ध था। झील, कुएं, तालाब और बावडियां वर्षा जल से लबालब रहा करती थी। सूखा, अकाल और अल्पवृष्टि की स्थिति में यही जलाशय पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करते थे। लेकिन अंधाधुंध जल दोहन से भू-जल स्तर में इस कदर कमी आई कि परंपरागत जल स्रोत सूखने लगे हैं। लेकिन महेंद्र कूप बावडी की पाइप लाइन वर्ष २०२० तक चलती रही। जिनके संरक्षण पर नगरपालिका और जिला प्रशासन का ध्यान नहीं रहा।
वर्ष १८९४ में शहर की प्यास बुझाने के लिए राजा महाराजा ने १० बावडियां और १० चौपरा निर्माण किए थे। विंध्य प्रदेश के समय किले द्वार के सामने पानी की टंकी निर्माण की था। एक टंकी से २० नल कनेक्शन दिए जाते थे। जिसमें १० नल कनेक्शन में कलेक्टर, एसपी, एडीएम के साथ अन्य अधिकारी और शहर के सार्वजनिक स्थानों के थे। तब पानी सप्लाई का जिम्मा पीएचई का था, फिर नगरपालिका ने जिम्मा लिया, उसके बाद बावडियों की स्थिति खराब हो गई। जबकि आज भी यह बावडी आधे शहर से अधिक की प्यास बुझा सकती हंै। पर्यावरण और जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों का मानना हंै कि अधिकांश बावडिय़ों की बदतर हालत के लिए अवैध निर्माण जिम्मेदार हंै। इन बावडियों का उचित रख रखाव और संरक्षण मिल जाए तो ये बावडियां लोगों की प्यास बुझाने के साथ पर्यटन के क्षेत्र में लाभकारी सिद्ध् हो सकती हैं।
महेंद्र कूप और मऊचुंगी की बावडी में आज भी पानी
१३० वर्ष पुरानी महेंद्र कूप, मऊचुंगी की बावडी के साथ अन्य में पानी भरा हैं। महेंद्र कूप बावडी, मऊचुंगी की बावडी, ढोंगा रोड की बावडी लाल ईट से निर्माण हैं, कई बावडी में नीचे तक सिढियां बनी हैं। बजाज की बगिया, गणेश बावडी, सौंदा कुआं के साथ नजरबाग की बावरी पानी से लबालब भरी हैं, लेकिन संरक्षण के अभाव में कूडादान बनकर रह गई हैं।
वर्ष २०२० तक महेंद्र कूप बावडी से सप्लाई हुआ पानी
महेंद्र कूप मोहल्ला निवासी गोकुल राजपूत बताते हैं कि शहर की महेंद्र कूप बावडी१३० वर्ष पुरानी हैं। इससे पुरानी टेहरी की टंकी को भरा जाता था। वर्ष २०२० तक नल लाइन और आसपास के मोहल्ले वाले रस्सी में बाल्टी बांधकर प्यास बुझाते थे। आज भी रस्सी से कटे पत्थर पर उसके प्रमाण प्रत्यक्ष गवाह हंै और आज भी मोहल्ले वाले छोटा बिजली पंप रखे हैं। वहीं मोहल्ले के साथ किले में पानी पहुंचाने वाली पाइप लाइन बिछी हैं।

हमारे पूर्वज जल का महत्व जानते थे, यही कारण हंै कि उन्होंने बूंद-बूंद पानी को सहेजने पर जोर दिया। जल संरक्षण के क्षेत्र में उनके किए कार्य आज भी ऐतिहासिक बावडियों के रूप में मौजूद हैं। ऐसी ही एक ऐतिहासिक बावड़ी हैं महेंद्र कूप, बजाज की बगिया, सौंदा कुआं, गणेश के साथ अन्य बावड़ी हैं।
राजेंद्र अध्वर्यु, समाजसेवी टीकमगढ़।
शहर में जितनी भी बावडी हैं, उनकों चिन्हित किया जाएगा। उसके बाद कौन बावडी में कितना पानी हैं, उसको दिखवाया जाएगा। अगर उनमें पर्याप्त पानी हैं तो उनका रखरखाव करके पेयजल के लिए उपयोग की जाएगी।
गीता मांझी, सीएमओ नगरपालिका टीकमगढ़।

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