राजशाही दौर से ही जिले में आम को लेकर काफी काम किया गया है। यहां के राजा द्वारा कुण्डेश्वर में जहां आम के कई बगीचे तैयार किए गए थे तो वर्तमान में हॉर्टिकल्चर विभाग भी इसके लिए काफी काम करता दिख रहा है। यहां के बागों में मुख्य रूप से लंगड़ा आम होने के साथ ही दशहरी, चौंसा, बगलूस, मलिका एवं सुंदरजा आम होते है। लेकिन मुख्य मांग लंगड़ा आम की रहती है। यहां पर आम का कारोबार करने वाले ठेकेदार बताते है कि बाहर के ठेकेदार हर बार एक ही बात पूछते है कि लंगड़ा तैयार हुआ कि नहीं।
खास स्वाद है लंगड़ा आम का
उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक बताते है कि यह आम सबसे खास है। उनका कहना है कि यह आम मीठा होने के साथ ही हल्की सी खटास लेकर आता है। इसकी जो भीनी-भीनी सुंगध है, वह सबसे जुदा है। उनका कहना है कि एक बार आम खाने के बाद आपके हाथ काफी देर तक इसकी खुशबू देते रहते है। यदि यह आम कहीं पर रखा है तो दूर से ही लोगों को इसकी खुशबू आ जाती है। वह बताते है कि यहां पर दो प्रकार के लंगड़ा आम होते है एक गोल और एक चपटा। वहीं राजशाही दौर के बनारसी बाग और उसके पीछे के बाग में पतले छिलके के लंगड़ा आम का स्वाद तो सबसे जुदा है। उनका कहना है कि टीकमगढ़ का दशहरी आम सबसे ज्यादा मीठा होता है, लेकिन इसकी मांग इतनी नहीं देखी जाती है। उनका कहना है कि जब इन बगीचों की नीलामी की जाती है तो ठेकेदारों का सबसे ज्यादा जोर लंगड़ा आम पर रहता है। उनका कहना है कि जिले में कुल 172 हैक्टेयर में आम के बगीचे है, लेकिन 100 हैक्टेयर में केवल लंगड़ा आम होता है।
इंतजार करते है लोग
आम के बगीचों का ठेके लेने वाले महंदी खान बताते है कि जिले के लंगड़ा आम का बाहर लोग इंतजार करते है। महंदी बताते है कि यह आम जिले के आसपास के जिलों के साथ ही आगरा, दिल्ली, मेरठ, लखनऊ सहित तमाम जगहों पर भेजा जाता है। इस बार मौसम के प्रतिकूल रहने से आम की फसल पर बुरा असर पड़ा है और बहुत काम माल निकाला है। उनका कहना है कि वह स्थानीय बाजार के साथ ही महज 10 गाड़ी माल ही बाहर भेज पाएंगे।