बड़ रही पर्यटकों की संख्या: ओरछा में आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों की संख्या में प्रति वर्ष इजाफा हो रहा है। वर्ष 2016-17 में ओरछा घूमने के लिए जहां 36216 विदेशी पर्यटक आए थे, वहीं 1 लाख 68036 देशी पर्यटकों ने भी भगवान श्रीरामराजा के दर्शन करने के साथ ओरछा भ्रमण किया था। वहीं वर्ष 2017-18 में ओरछा में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में इजाफा देखा गया और यह संख्या 41903 पर पहुंच गई। इसके साथ ही देशी पर्यटकों की संख्या में लगभग 70 हजार की बढ़ोत्तरी हुई और 2 लाख 43463 पर्यटकों ने ओरछा का भ्रमण किया।
आगे नही बढ़ रहे पर्यटक: प्रति वर्ष हजारों की संख्या में जहां विदेशी पर्यटक ओरछा पहुंच रहे है, वहीं लाखों की संख्या में देशी पर्यटक भी यहां आ रहे है। लेकिन यह पर्यटक ओरछा की सीमाओं को पार नही कर रहे है। विदित हो कि ओरछा आने वाले अधिकांश पर्यटक यहां से सीधे खजुराहों के लिए रवाना हो जाते है। यदि शासन और प्रशासन द्वारा इसके लिए प्रयास किया जाए तो जिले के अन्य पर्यटन स्थलों पर घूम कर भी यह पर्यटक छतरपुर से खजुराहों जा सकते है। लेकिन इसके लिए कोई प्रयास नही किए जा रहे है।
यहां है संभावनाएं: जिले में कई प्राचीन स्थल ऐसे है, जहां पर्यटन की असीम संभावनाएं है। यदि पर्यटकों को एक बार इस ओर आकर्षित किया गया तो जिले का गढक़ुण्डार, मडख़ेरा, कुण्डेश्वर, बल्देवगढ़ का किला, पपौरा, अहार एवं ऊमरी का सूर्य मंदिर भी पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हो सकते है।
गढक़ुडार भी अछूता: ओरछा से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित निवाड़ी का गढक़ुडार का किला भी अब तक पर्यटकों से अछूता बना हुआ है। अपनी बेजोड़ वास्तु एवं शिल्प के मशहूर यह यह किला आज भी लोगों को हैरान कर देता है। खंगार वंश की राजधानी का एक मात्र दुर्गम अजेय दुर्ग की स्थापना इस प्रकार से की थी कि यह किला दूर से तो लोगों को नजर आता है, लेकिन जैसे-जैसे लोग इसके पास पहुंचते है, यह विलुप्त हो जाता है। उस समय विदेशी आक्रांताओं से युद्ध में बचने एवं दूर से ही आक्रमणकारियों को निशाना बनाने के लिए ऊंची पहाड़ी पर निर्मित इस किले की स्थापित्य कला आज भी लोगों के लिए कौतुहल का विषय बनी हुई है।
सूर्योपासना का केन्द्र था मडख़ेरा: इसके साथ ही जिले के मडख़ेरा एवं ऊमरी में स्थित सूर्य मंदिर भी जिले के पर्यटन की प्रमुख कड़ी हो सकते है। जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मडख़ेरा का सूर्य मंदिर अपनी वास्तु कला का अद्भुत नमूना है। बताया जाता है कि यह मंदिर 7वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार राजाओं के समय में निर्मित कराया गया था। यहां पर 7 घोड़ों के रथ पर भगवान सूर्य की प्रतिमा विराजमान है। लेकिन यह स्थन भी पर्यटन से अछूता बना हुआ है।
यहां भी संभावनाएं: इसके साथ ही जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्वयं भू भगवान शिव का मंदिर कुण्डेश्वर, कुण्डेश्वर मंदिर के पीछे स्थित विशाल पर्यटन क्षेत्र खैराई के जंगल, बल्देवगढ़ का किला] जैन समाज का पपौरा और अहार के मंदिर भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते है।