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जम नहीं पाया 3डी फिल्मों का सिलसिला, दूर हैं त्रिआयामी कमाल

locationमुंबईPublished: Jul 30, 2020 05:24:01 pm

भारत में 3डी कैमरों से शूटिंग अब भी बड़ी चुनौती है, क्योंकि इनके विशेषज्ञ कैमरामैन के साथ-साथ दूसरे तकनीशियंस का अभाव है। ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग 2डी कैमरों से की जाती है। पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उन्हें 3डी में तब्दील किया जाता है। इससे अपेक्षित प्रभाव नहीं आ पाता।

जम नहीं पाया 3डी फिल्मों का सिलसिला, दूर हैं त्रिआयामी कमाल

जम नहीं पाया 3डी फिल्मों का सिलसिला, दूर हैं त्रिआयामी कमाल

-दिनेश ठाकुर
मलयालम फिल्म ‘माय डियर कुट्टीचेतन’ (हिन्दी में डब संस्करण का नाम ‘छोटा चेतन’ था) ने 1984 में धमाका कर दिया था। यह भारत की पहली 3डी फिल्म है। दर्शकों के लिए यह नया तजुर्बा था। इसे देखने के लिए सिनेमाघरों में टिकट के साथ विशेष चश्मे बांटे गए थे, जिन्हें हॉल छोडऩे से पहले लौटाना होता था। अपने यहां मुफ्त के माल पर दिल के बेरहम होने की परम्परा रही है। इसी परम्परा के कारण रेलवे को ट्रेनों के टॉयलेट में स्टील के मग जंजीर से बांधकर रखने पड़ते हैं। जाने कौन इन्हें अपनी सम्पत्ति मानकर उठा ले जाए। ‘माय डियर कुट्टीचेतन’ देखने के बाद चश्मों को अपनी जेब के हवाले करने वालों ने इन्हें पहनकर पता नहीं क्या देखा होगा। बहरहाल, उन्हीं दिनों यह खबर फैली कि सिनेमाघरों में इन चश्मों के इस्तेमाल से लोगों में आंखों का संक्रमण फैल रहा है। इसको लेकर फिल्म के शुरू में एक डॉक्यूमेंट्री जोडऩी पड़ी, जिसमें अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, प्रेम नजीर और चिरंजीवी बताते थे कि हर शो के बाद इन चश्मों को सेनेटाइज किया जाता है।

‘माय डियर कुट्टीचेतन’ के शानदार कारोबार ने कुछ और फिल्मकारों को 3डी फिल्मों के लिए प्रेरित किया। निर्देशक राज एन. सिप्पी ने हिन्दी में पहली 3डी फिल्म ‘शिवा का इंसाफ’ (1985) बनाई। जैकी श्रॉफ और पूनम ढिल्लों की जोड़ी वाली यह फिल्म नहीं चली। हॉलीवुड पहली 3डी फिल्म ‘द पावर ऑफ लव’ काफी पहले 1922 में बना चुका था। इन फिल्मों की तकनीकी दक्षता के मामले में वह भारत से काफी आगे है। वहां की ‘अवतार’, ‘हैरी पॉटर’, ‘आइस एज’ और ‘स्पाइडर्स’ जैसी फिल्मों में 3डी (त्रिआयामी) दृश्य जितने प्रभावी तरीके से पर्दे पर उतारे गए, वैसा कमाल अब तक किसी भारतीय फिल्म में नजर नहीं आया। चाहे वह बच्चों के लिए बनाई गई ‘आबरा का डाबरा’ हो या इमरान हाशमी की हॉरर फिल्म ‘मि. एक्स’ या फिर शाहरुख खान का एक्शन ड्रामा ‘रा-वन’। इस साल के शुरू में आई ‘स्ट्रीट डांसर’ के 3डी दृश्य भी खास प्रभावी नहीं रहे। कुछ साल पहले संस्कृत में भी ‘अनुरक्ति’ नाम की पिल्म बन चुकी है।

भारत में 3डी कैमरों से शूटिंग अब भी बड़ी चुनौती है, क्योंकि इनके विशेषज्ञ कैमरामैन के साथ-साथ दूसरे तकनीशियंस का अभाव है। ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग 2डी कैमरों से की जाती है। पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उन्हें 3डी में तब्दील किया जाता है। इससे अपेक्षित प्रभाव नहीं आ पाता। फिर भारत में 3डी सिनेमाघर भी ज्यादा नहीं हैं। गैर 3डी सिनेमाघरों में 3डी फिल्म देखना वैसा ही है, जैसे स्नानघर के शावर के नीचे बैठकर यह सोचना कि झमाझम बारिश हो रही है।

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