‘माय डियर कुट्टीचेतन’ के शानदार कारोबार ने कुछ और फिल्मकारों को 3डी फिल्मों के लिए प्रेरित किया। निर्देशक राज एन. सिप्पी ने हिन्दी में पहली 3डी फिल्म ‘शिवा का इंसाफ’ (1985) बनाई। जैकी श्रॉफ और पूनम ढिल्लों की जोड़ी वाली यह फिल्म नहीं चली। हॉलीवुड पहली 3डी फिल्म ‘द पावर ऑफ लव’ काफी पहले 1922 में बना चुका था। इन फिल्मों की तकनीकी दक्षता के मामले में वह भारत से काफी आगे है। वहां की ‘अवतार’, ‘हैरी पॉटर’, ‘आइस एज’ और ‘स्पाइडर्स’ जैसी फिल्मों में 3डी (त्रिआयामी) दृश्य जितने प्रभावी तरीके से पर्दे पर उतारे गए, वैसा कमाल अब तक किसी भारतीय फिल्म में नजर नहीं आया। चाहे वह बच्चों के लिए बनाई गई ‘आबरा का डाबरा’ हो या इमरान हाशमी की हॉरर फिल्म ‘मि. एक्स’ या फिर शाहरुख खान का एक्शन ड्रामा ‘रा-वन’। इस साल के शुरू में आई ‘स्ट्रीट डांसर’ के 3डी दृश्य भी खास प्रभावी नहीं रहे। कुछ साल पहले संस्कृत में भी ‘अनुरक्ति’ नाम की पिल्म बन चुकी है।
भारत में 3डी कैमरों से शूटिंग अब भी बड़ी चुनौती है, क्योंकि इनके विशेषज्ञ कैमरामैन के साथ-साथ दूसरे तकनीशियंस का अभाव है। ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग 2डी कैमरों से की जाती है। पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उन्हें 3डी में तब्दील किया जाता है। इससे अपेक्षित प्रभाव नहीं आ पाता। फिर भारत में 3डी सिनेमाघर भी ज्यादा नहीं हैं। गैर 3डी सिनेमाघरों में 3डी फिल्म देखना वैसा ही है, जैसे स्नानघर के शावर के नीचे बैठकर यह सोचना कि झमाझम बारिश हो रही है।