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क्रिकेट-कबड्डी के बाद क्या अन्य खेलों को भी दिया जाना चाहिए ग्लैमर का रंग, जानिए अन्य खेलों को कैसे मिलेगी लोकप्रियता

Published: Nov 04, 2016 05:02:00 pm

Submitted by:

balram singh

हालांकि फुटबॉल लीग से कई बॉलीवुड सितारे और कई बड़े व्यावसायी और सचिन—धोनी—गांगुली जैसे प्रसिद्ध खिलाड़ी भी जुड़ गए हैं लेकिन देश में अभी तक उसे क्रिकेट जितनी लोकप्रियता नहीं मिल सकी है।

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देश में क्रिकेट की आईपीएल के बाद अब प्रो—कबड्डी लीग की लोकप्रियता भी दिनों—दिन बढ़ती जा रही है। इसका कारण है, इस लीग से बॉलीवुड का जुड़ा होना और देश में चारों तरफ आठ स्थानों पर मैच होना। इसके साथ ही रंगीन रोशनी के बीच खेल का सीधा प्रसारण विश्व प्रसिद्ध चैनल के जरिए करवाने से इन खेलों की पहुंच सर्वव्यापी हो गई है।
हमारे देश में आईपीएल और प्रो—कबड्डी के अलावा फुटबॉल की इंडियन सुपर लीग और आई—लीग, हॉकी इंडिया लीग, चैंपियंस टेनिस लीग, प्रीमियर बैडमिंटन लीग, प्रो—रेसलिंग लीग का आयोजन भी होता है, लेकिन इनके प्रचार प्रसार और विज्ञापन के बिना इन्हें इतनी लोकप्रियता नहीं मिल सकी है। हालांकि फुटबॉल लीग से कई बॉलीवुड सितारे और कई बड़े व्यावसायी और सचिन—धोनी—गांगुली जैसे प्रसिद्ध खिलाड़ी भी जुड़ गए हैं लेकिन देश में अभी तक उसे क्रिकेट जितनी लोकप्रियता नहीं मिल सकी है।
इसका सबसे बड़ा कारण है इन खेलों की सुविधा सिर्फ बड़े शहरों तक ही होना। कबड्डी और क्रिकेट की लोकप्रियता का कारण भी यही है कि इन खेलों के आवश्यक संसाधन आज छोटे—छोटे गांवों में भी उपलब्ध हैं। जबकि टेनिस, फुटबॉल, हॉकी या बैडमिंटन के मैदान और आवश्यक संसाधन तथा सीखने के केन्द्र सिर्फ बड़े शहरों में ही हैं।
लीग से मिलेगा खेलों को बढ़ावा ​खेल चाहे कोई सा भी हो अगर उसकी स्थानीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा हो तो उस खेल को बढ़ावा मिलना निश्चित है। खेल को बढ़ावा देने के लिए ग्राम, तहसील, और उपखंड स्तर पर भी प्रतियोगिताएं होनी चाहिए जिससे छिपी हुई प्रतिभाओं को मौका मिले और उन्हें उचित प्लेटफार्म मिल सके। इसके साथ ही ग्लैमर का तड़का खेल की प्रसिद्धी में बड़े पैमाने पर इजाफा करता है। यही कारण है कि क्रिकेट और कबड्डी को इतनी लोकप्रियता मिल रही है जबकि अन्य खेलों की लीगों के बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी भी नहीं है।
हमारे देश में ऐसे अनेक स्वास्थ्यवर्धक खेल हैं, जो कि ग्रामीण स्तर पर खूब खेले जाते रहे हैं लेकिन अब कंप्यूटर और टीवी के युग में वे अपनी पहचान तक खोते जा रहे हैं। खो—खो, रूमाल झपट्टा, गिल्ली—डंडा, सितोलिया, मलखंब, गोला फेंक, भाला फेंक आदि ए​थेलिटिक्स के अनेक खेल ऐसे हैं जो कि लुप्त से हो गए हैं। इन खेलों को खेलने की सुविधा ग्रामीण स्तर तक सुनिश्चित की जाए और लीग का आयोजन करवाया जाए तो ओलंपिक में भी हमारा परचम फहरेगा।
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