कोयला खदानों की तरह सोने की खदानों के मजदूर भी जान हथेली पर रखकर काम करते हैं। पिछले साल अफगानिस्तान के कोहिस्तान में सोने की खदान धंसने से 40 मजदूरों की जान गई थी। सोने की खदान में खतरे इस लिहाज से भी ज्यादा हैं कि काफी गहराई तक (तीन किलोमीटर से भी ज्यादा) खुदाई करनी पड़ती है। फिर बदमाशों की टोलियों भी गिद्धों की तरह इनके आस-पास मंडराती रहती हैं। इन खतरों की झलक चार्ली चैप्लिन की ‘द गोल्ड रश’ (1925) में देखने को मिली थी। सोने के भंडार और खदानें दिखाने के मामले में हॉलीवुड वैसे भी हमसे आगे रहा है। वहां की ‘द स्पॉयलर्स’, ‘गोल्ड इज व्हेयर यू फाइंड इट’, ‘वर्जिनिया सिटी’, ‘येलो स्काई’, ‘लोस्ट इन अलास्का’, ‘मैकेनाज गोल्ड’, ‘देयर विल बी ब्लड’ और ‘राइड द हाई कंट्री’ जैसी दर्जनों फिल्मों का ताना-बाना सोने की खदानों के इर्द-गिर्द बुना गया।
कन्नड़ फिल्मकार प्रशांत नील ने जब ‘के.जी.एफ.’ बनाई थी, तब शायद उन्हेे भी अंदाजा नहीं होगा कि इस फिल्म पर देशभर में जमकर धन बरसेगा। यह कन्नड़ की ‘बाहुबली’ साबित हुई। इसे हिन्दी समेत कई भाषाओं में डब कर सिनेमाघरों में उतारा गया था। यह पहली कन्नड़ फिल्म है, जिसने 200 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार किया। इसने दो नेशनल अवॉर्ड (एक्शन, स्पेशल इफेक्ट्स) भी जीते। इसके नायक यश नए एंग्री यंगमैन के तौर पर उभरे। ऐसे में फिल्म का दूसरा भाग बनना ही था। ‘के.जी.एफ. 2’ के नायक तो यश हीं हैं, इसमें संजय दत्त और रवीना टंडन ने भी अहम किरदार अदा किए हैं।
करीब 150 करोड़ रुपए की लागत वाली ‘के.जी.एफ. 2’ पिछले दिसंबर में सिनेमाघरों में पहुंचने वाली थी, लेकिन किन्हीं कारणों से यह मुमकिन नहीं हुआ। अब सिनेमाघर बंद होने से यह अटकी पड़ी है। पिछले दिनों खबर उड़ी थी कि इस फिल्म को सीधे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उतारा जा सकता है। प्रशांत नील और यश ने इस खबर को नकारते हुए स्प्ष्ट किया है कि यह फिल्म बड़े पर्दे के लिए बनाई गई है। इसे सिनेमाघरों में ही दिखाया जाएगा। उनकी तरह सिनेमा-प्रेमियों को भी सिनेमाघर खुलने का इंतजार है।