शुक्र है कि दक्षिण की मसाला फिल्मों की तरह इसमें उस तरह का लाउड मेलोड्रामा नहीं है, जहां शीशी-दर-शीशी ग्लीसरीन खर्च किया जाता है और ताबड़तोड़ डायलॉग चिपकाए जाते हैं। चमत्कार को नमस्कार करने वाले फार्मूलों से भी बचा गया है। इंटरवल तक फिल्म काफी चुस्त-दुरुस्त है। बाद में सस्पेंस पैदा करने के लिए डाले गए प्रसंग जरूर नाटकीय लगते हैं। नए निर्देशक ईश्वर कार्तिक इस फेल-फक्कड़ से बचते तो फिल्म और असरदार हो सकती थी।
शुक्रवार को ‘पेंगुइन’ का डिजिटल प्रीमियर हुआ। ज्योतिका की ‘पोंमगल वंधल’ के बाद यह दूसरी तमिल फिल्म है, जो सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आई है। हालांकि इसमें दक्षिण के लिंगा, मधमपट्टी रंगराज, नित्या कृभा, ऐश्वर्या रमानी और मुरली जैसे कलाकार भी हैं, लेकिन पूरी फिल्म कीर्ति सुरेश के कंधों पर टिकी है। गुम बेटे की खोज में भटकती परेशान हाल मां के किरदार में उन्होंने जान डाल दी है। इस फिल्म में उनकी अदाकारी तमिल-तेलुगु में बनी ‘महंती’ (2018) की यादें ताजा कर देती है। इस बायोपिक में उन्होंने बड़ी खूबसूरती से दक्षिण की मशहूर अदाकारा सावित्री का किरदार अदा किया था। ‘महंती’ के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था। दक्षिण के निर्माता जी. सुरेश कुमार और अदाकारा मेनका की बेटी कीर्ति सुरेश ‘गीतांजलि’, ‘रिंग मास्टर’ और ‘सरकार’ जैसी कई फिल्मों में अदाकारी के जलवे बिखेर चुकी हैं। ‘पेंगुइन’ का भावपूर्ण किरदार उनके कॅरियर में एक और मील का पत्थर है। यह फिल्म सिनेमाघरों में पहुंचती तो शायद इसे ज्यादा बड़ा दर्शक वर्ग नसीब होता।