उनका कहना है कि इन क्रांतिकारियों के जीवन के बारे में बहुत अधिक ज्ञात नहीं है, लेकिन इस काल्पनिक कहानी के जरिए ये दिखाने का प्रयास किया गया है कि उनके जीवन में क्या हुआ था और अगर दोनों एक साथ मिल गए होते तो क्या होता।
सीताराम राजू और कोमाराम भीम कौन? सीताराम राजू का जन्म 1897 में विशाखापटनम में हुआ था। जबकि कोमाराम भीम ने 1900 ईस्वी में आदिलाबाद के संकेपल्ली में अपनी आंखें खोली थीं। सीताराम अंग्रेजों के अत्याचारों का दंश देखते हुए बड़े हुए। वहीं कोमाराम ने अंग्रेजों की बर्बरता झेली। दोनों छोटी उम्र से ही वो अत्याचार के खिलाफ लड़ना चाहते थे। बड़े होने पर कोमाराम ने कुछ आदिवासी साथियों को एकत्र किया और हैदराबाद की आजादी के लिए विद्रोह छेड़ दिया। वो गोरिल्ला युद्ध में माहिर थे। 1928 से लेकर 1940 तक उन्होंने निजाम के सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया और अपने लोगों के लिए एक युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। दूसरी तरफ सीताराम राजू ने अंग्रेजों का डटकर सामना किया और 1922 से 1924 तक चले राम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। इससे परेशान होकर अंग्रेजों ने उनके खिलाफ दमन की नीति अपनाई और उन्हें एक पेड़ से बांधकर गोलियों के भून डाला था।