scriptदूधिया रोशनी को लगा ग्रहण, अधिकांश शहर का हिस्स बना अमावस की रात | An illuminated eclipse, most of the city was built on the night of Amavas | Patrika News

दूधिया रोशनी को लगा ग्रहण, अधिकांश शहर का हिस्स बना अमावस की रात

locationटोंकPublished: May 31, 2017 07:58:00 am

Submitted by:

pawan sharma

ये लाइटें सालभर भी नहीं चल पाई और फाल्ट आने से बंद हो गई। शहर के मुख्य मार्ग ही अंधेरे के आगोश में हैं। कई शिकायतों के बावजूद नगर परिषद इन पर ध्यान नहीं दे रही।

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टोंक. शहर को दूधिया रोशनी से सरोबार करने के लिए लगाई गई रोड लाइटें एक महीने से खराब हैं। ऐसे में शहर के अधिकांश इलाकों में रात को अंधेरा रहता है।

टोंक. शहर को दूधिया रोशनी से सरोबार करने के लिए लगाई गई रोड लाइटें एक महीने से खराब हैं। ऐसे में शहर के अधिकांश इलाकों में रात को अंधेरा रहता है। जबकि लाखों रुपए की लागत से शहर के 7 हजार खम्भों पर ये लाइटें लगाई गई थी। इनमें से 50 प्रतिशत बंद हैं। 
अन्य लाइटों में टाइमर नहीं होने से ये दिनरात जलती रहती है। इससे बिजली की खपत भी कम नहीं हो रही। जबकि रोड लाइटों पर एलईडी लगाने का मकसद बिजली की खपत कम करना था, लेकिन अधिकांश लाइटें दिन-रात चालू रहने से खपत घट नहीं रही। इधर, नगर परिषद ने इनकी मरम्मत के लिए एक फर्म को टेण्डर भी दिया हुआ है,
 लेकिन अधिकारियों की अनदेखी के चलते इनकी समय पर मरम्मत नहीं हो रही। हालात ये हैं कि शहर के मुख्य मार्ग ही अंधेरे के आगोश में हैं। कई शिकायतों के बावजूद नगर परिषद इन पर ध्यान नहीं दे रही। एलईडी लगाने का टेंडर जिस फर्म को दिया गया वो उसकी मॉनिटरिंग नहीं कर रही है। ऐसे में शहर के मुख्य मार्ग समेत अन्य इलाके अंधेरे में रहते हैं। 
यहां बंद रहती है

परिषद में नेता प्रतिपक्ष गायत्री चौरासिया का कहना है कि शहर के मुख्य मार्गों समेत गलियों को रोशन करने के लिए नगर परिषद ने एक फर्म को टेंडर दिया था। ये लाइटें सालभर भी नहीं चल पाई और फाल्ट आने से बंद हो गई। छावनी से बस स्टैण्ड, छावनी से बमोर गेट, गांधी पार्क, सुभाष बाजार से तेलियों का तालाब, शोरगरान मोहल्ले से पटेल सर्किल, माणक चौक से छोटा बाजार, बड़ा कुआं से सबील शाह चौकी तक की लाइटें खराब हो चुकी है।
यह होना था अंतर

सूत्रों ने बताया कि 200 वाट वाली रोड लाइट (मर्करी) में 12 घंटे में 2.5 यूनिट की खपत होती है। इससे सात रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से प्रतिदिन साढ़े सतरह रुपए का खर्चा आता है। एलईडी लगाने के बाद यह खपत आधी रह जानी थी। दो सौ वाट वाली मर्करी के बराबर की रोशनी 50 वाट की एलईडी देती है तथा खपत भी एक यूनिट ही होती है।
 ऐसे में मात्र सात रुपए ही खर्चा आता है। एलईडी लागने से पहले शहर की सात हजार रोड लाइट का बिजली का बिल सालाना एक करोड़ 50 लाख रुपए आता था। एलईडी लगने के बाद यह खर्च 60 लाख रुपए ही रह जाना चाहिए था, लेकिन ये खर्चा अभी भी सवा करोड़ रुपए के करीब है। इसका कारण दिन-रात रोड लाइटों का जलना है।
यह है नियम

टेंडर नियमों के मुताबिक शहर के सात हजार खम्भों पर लगाई गई एलईडी लाइटों की देखरेख सम्बन्धित फर्म को सात साल तक करनी है। मरम्मत के लिए वायर समेत अन्य उपकरण भी अपने स्तर पर ही फर्म को लगाने हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसके चलते सालभर पहले लगाई गई रोड लाइटें बंद हो गई है। सम्बन्धित फर्म ने टाइमर भी नहीं लगाए। इससे लाइटें दिन-रात चालू रहती है।
ये हैं समस्याएं

शहर में रोड लाइट कुछ तो बंद है, कुछ दिन-रात चालू रहती है। ऐसे में लोग रात को बंद होने पर ज्यादा परेशान हैं।

अशोक राव, हाउसिंग बोर्ड टोंक
शहर के मुख्य बाजार ही अंधेरे में रहते हैं। ऐसे में करोड़ की लागत से लगाई गई एलईडी का लोगों को फायदा नहीं मिल रहा है।

नरेश सोनी, बड़ा कुआं टोंक

गलियों में बंद रोड लाइटों को लेकर लोग कई बार आयुक्त से मिल चुके, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो रहा है।
मो. इकबाल, पांच बत्ती टोंक

खराब एलईडी लाइटों पर कर्मचारी ध्यान नहीं दे रहे हैं। इससे लोग परेशान हैं। जिला कलक्टर को भी इस बारे में अवगत करा चुके।

नितिन कुमार, बड़ा कुआं
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