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एक लाख 35 हजार पुस्तकों का खजाना है एपीआरआई

locationटोंकPublished: Apr 11, 2021 08:43:27 pm

Submitted by:

jalaluddin khan

अकबर व औरंगजेब के लिखी हुई पुस्तकें भी है मौजूदरामायण, महाभारत, भगवद् गीता, सिंहासन बत्तीसी आदि की भी फारसी भाषा में अनुवादित
जलालुद्दीन खान
टोंक. दुनिया की प्राचीन कुरान की प्रतिलिपि हो या महाभारत का फारसी अनुवाद। इरान के 74 बादशाहों की जीवनी एक पुस्तक में और बगदाद के मशहूर डाकू हलाकू की ओर से दजला नदी में पुस्तकों से बनाए गए पुल में डाली गई किताबों में से मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में रखी गई पुस्तकें आज भी लोगों को खासी पसंद आ रही है।

एक लाख 35 हजार पुस्तकों का खजाना है एपीआरआई

एक लाख 35 हजार पुस्तकों का खजाना है एपीआरआई

एक लाख 35 हजार पुस्तकों का खजाना है एपीआरआई
अकबर व औरंगजेब के लिखी हुई पुस्तकें भी है मौजूद
रामायण, महाभारत, भगवद् गीता, सिंहासन बत्तीसी आदि की भी फारसी भाषा में अनुवादित

जलालुद्दीन खान
टोंक. दुनिया की प्राचीन कुरान की प्रतिलिपि हो या महाभारत का फारसी अनुवाद। इरान के 74 बादशाहों की जीवनी एक पुस्तक में और बगदाद के मशहूर डाकू हलाकू की ओर से दजला नदी में पुस्तकों से बनाए गए पुल में डाली गई किताबों में से मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में रखी गई पुस्तकें आज भी लोगों को खासी पसंद आ रही है।
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान का म्यूजियम दुनियाभर में मशहूर है। यहां साहित्य और इतिहास का खजाना होने पर दुनियाभर के स्कॉलर्स आते रहते हैं। कोरोना काल के चलते अभी इसकी संख्या में गिरावट आई है। फिर भी देशभर से 200 जने प्रतिदिन अवकाश को छोड़कर यहां आते हैं।

3 लाख पुस्तकों से बनाया था पुल
सैकड़ों वर्ष पूर्व बगदाद के डाकू हलाकू ने दजला दरिया पार करने के लिए वहां के पुस्तकालयों से करीब तीन लाख से अधिक अरबी और फारसी की पुस्तकों को दरिया में डाल दिया था।
जब पुल बन गया तो वह और उसके साथी दरिया पार कर गए थे। इन दिनों सात दिनों तक दरिया का पानी पुस्तकों से काला हो गया था।


बादशाह अकबर ने कराया था महाभारत का अनुवाद
मुल्क के बादशाह अकबर ने उन दिनों महाभारत का फारसी में अनुवाद कराया था। यह अनुवाद ताहिर मोहम्मद ने किया था।
अनुवाद वाला वो ग्रंथ मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में मौजूद है। इसके अलावा बादशाह औरंगजेब द्वारा लिखी गई अल-कुरान-उल मजीद भी यहां मौजूद है। इसके अलावा कन्नड़ भाषा में केले के पत्तों पर लिखी पुस्तक भी यहां मौजूद है।

असीम साहित्य उपलब्ध है
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान एकमात्र सरकारी संस्थान है, जहां विशेष पुस्तकों, ग्रन्थों का संग्रह केन्द्र है। यहां सूफिज्म, उर्दू, अरबी एवं फारसी साहित्य, केटेलाग्स, यूनानी चिकित्सा, स्वानेह हयात (आत्म कथा), मध्य कालीन इतिहास, स्वतन्त्रता अभियान पर साहित्य, खत्ताती, रीमिया, कीमिया, सीमिया, दर्शन, तर्कशास्त्र, विधि शास्त्र, विज्ञान एवं शिकार आदि विषयों पर असीम साहित्य उपलब्ध है।

संस्थान दुर्लभ एवं अद्भुत साहित्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हिस्टोरियोग्राफी, ओरियन्टोलोजी एवं इस्लामिक स्टडीज पर अमूल्य एवं दुर्लभ सामग्री भी यहां संग्रहित है। इनके कारण इसकी ख्याति अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर है।

संस्थान में संधारित धरोहर में 8053 दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ, 27785 मुद्रित पुस्तकें , 10239 कदीम रसाइल, 674 फरामीन एवं भूतपूर्व रियासत टोंक के महकमा शरीअत के 65000 फैसलों की पत्रावलियों के अतिरिक्त हजारों अनमोल अभिलेख, प्रमाण-पत्र, तुगरे और वसलियां उपलब्ध हैं।
संस्थान में एक लाख पैंतीस हजार पुस्तकें हैं। यहां हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण, महाभारत, भगवद् गीता, सिंहासन बत्तीसी आदि की भी फारसी भाषा में अनुवादित पुस्तकें मौजूद हैं। यहां ज्योतिष, भूगोल, जीव विज्ञान, इतिहास, सूफिज्म आदि की पुस्तकें मौजूद हैं।

ऐसे हुई थी शुरुआत
बुनियादी तौर पर इस संस्थान की किताबों को टोंक रियासत के तीसरे शासक नवाब मोहम्मद अली खां ने एकत्र किया था। उन्हें तात्कालीन अंग्रेज सरकार ने बनारस भेज दिया था। नवाब मोहम्मद अली खां साहित्य के संग्रह एवं इसके अध्ययन में अत्यधिक रुचि रखते थे एवं मशरिकी उलूम के विद्वान थे।
इसके परिणामस्वरूप वहां निवास के दौरान उन्होंने अपने निजी आर्थिक साधनों से मशरिकी उलूम पर महत्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रन्थ एकत्र किए। यह मूल्यवान संग्रहालय जिला सईदिया पुस्तकालय, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के शाखा कार्यालय, टोंक से गुजरते हुए राज्य सरकार की ओर से 1978 में सृजित एक पृथक एवं स्वतन्त्र संस्थान में स्थान्तरित हुआ।

कुरान देखने आते हैं लोग
दुनिया की सबसे बड़ी व वजनी कुरान मजीद भी टोंक में बनाई गई है। उसे अरबी-फारसी में लिखा गया है। सावा जिला चित्तौडगढ़़ निवासी मोहम्मद शेर खां की मारफत एपीआरआई के फारसी विभाग के अनुवादक मौलाना जमील अहमद के निर्देशन में हाफिज कारी गुलाम अहमद ने कुरान मजीद लिखी है। अब तक इस कुरान को 5 लाख लोग देख चुके हैं।
इसकी लागत एक करोड़ रुपए है। बनने में पूरे 2 साल लगे। कुरान 32 पन्नों की है। इसकी चौड़ाई 90 इंच, लम्बाई 125 इंच, वजन 250 किलो तथा इसका कागज 400 साल तक खराब नहीं होगा।

कार्य चल रहा है
संस्थान की गतिविधियों का विस्तार एवं आधुनिक युग के अनुसार संस्थान के हस्तलिखित ग्रन्थ एवं शराशरीफ रिकार्ड के डिजिटाइजेशन, प्रिजर्वेशन, कन्जर्वेशन कार्य को अमलीजामा पहनाने के लिए राज्य सरकार के निर्देशानुसार 24.00 करोड़ के प्रस्ताव स्वीकृत कराए हैं। – डॉ. सौलत अली खां
– निदेशक, मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक
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