scriptvideo …टोंक में संस्कृत में भी कैलीग्राफी की हुई शुरुआत | Calligraphy also started in Sanskrit in Tonk | Patrika News

video …टोंक में संस्कृत में भी कैलीग्राफी की हुई शुरुआत

locationटोंकPublished: May 31, 2020 07:07:19 pm

Submitted by:

MOHAN LAL KUMAWAT

टोंक की मशहूर कैलीग्राफी आर्ट में नया रंग आ रहा है। अब तक कैलीग्राफी उर्दू, फारसी व अरबी शब्दों मेे की जाती थी, लेकिन अब टोंक में संस्कृत में भी कैलीग्राफी की जाले लगी है। इसकी शुरुआत देशभर में मशहूर मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में की गई है।

Calligraphy art

टोंक की मशहूर कैलीग्राफी आर्ट में नया रंग आ रहा है।

टोंक. टोंक की मशहूर कैलीग्राफी आर्ट में नया रंग आ रहा है। अब तक कैलीग्राफी उर्दू, फारसी व अरबी शब्दों मेे की जाती थी, लेकिन अब टोंक में संस्कृत में भी कैलीग्राफी की जाले लगी है। इसकी शुरुआत देशभर में मशहूर मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में की गई है।
टोंक में कैलीग्राफी की शुरुआत 1867 में टोंक रियासत के तीसरे नवाब मोहम्मद अली ने की थी। तब से लेकर अब तक कैलीग्राफी उर्दू, अरबी व फारसी में की जाती रही है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी में लगाए गए लॉकडाउन में संस्थान के निदेशक डॉ. सौलत अली खां ने इसमें कुछ नया रंग लाने की कोशिश की।
उन्होंने लॉकडाउन में कला विषय के विद्यार्थियों से ऑन लाइन कैलीग्राफी बनाने को कहा। इसमें कहा गया कि विद्यार्थी संस्थान के कैलीग्राफिस्ट मुरलीधर अरोड़ा के सान्निध्य में संस्कृत में भी कैलीग्राफी बनाए। इसके बाद ऑन लाइन शहर के 15 विद्यार्थी इससे जुड़े और उन्होंने उर्दू के साथ संस्कृत में भी कैलीग्राफी बनाई।
सीएम फंड में जाएगी राशि
लॉकडाउन के अंदर बनाई गई कैलीग्राफी बिकने के बाद आनी वाली राशि को कोरोना महामारी में मदद के लिए सीएम फंड में भेजा जाएगा। संस्थान ने इन कैलीग्राफी को सोशल मीडिया पर ऑन लाइन बिक्री के लिए डाला है।
एक शब्द को लिखते हैं कई तरीके से
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान प्राचीन किताबों के लिए ही नहीं है, बल्कि कैलीग्राफी के लिए भी मशहूर है। ऐसे में संस्थान अब इस हुनर को शहर के विद्यार्थियों को भी दे रहे हैं। लॉकडाउन से पहले संस्थान में प्रति दिन कक्षाएं लगाई जाती थी। इसमें एक दर्जन विद्यार्थी केलीग्राफी का हुनर सीखते हैं। केलीग्राफ में एक शब्द को 50 अलग-अलग तरीके से लिखा जाता है। कागज, कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी, कांच, दाल, चावल, बोतल में बेहतरीन केलीग्राफी की जाती है।
ताकि विद्यार्थी आगे बढ़ सके
कैलीग्राफी का फन यूं तो टोंक में सालों से है, लेकिन नई पीढ़ी को अब उर्दू, अरबी व फारसी के साथ संस्कृत में भी कैलीग्राफी को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। टोंक की कैलीग्राफी देशभर में मशहूर है।
– डॉ. सौलत अली खां, निदेशक मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक
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