लॉकडाउन के अंदर बनाई गई कैलीग्राफी बिकने के बाद आनी वाली राशि को कोरोना महामारी में मदद के लिए सीएम फंड में भेजा जाएगा। संस्थान ने इन कैलीग्राफी को सोशल मीडिया पर ऑन लाइन बिक्री के लिए डाला है।
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान प्राचीन किताबों के लिए ही नहीं है, बल्कि कैलीग्राफी के लिए भी मशहूर है। ऐसे में संस्थान अब इस हुनर को शहर के विद्यार्थियों को भी दे रहे हैं। लॉकडाउन से पहले संस्थान में प्रति दिन कक्षाएं लगाई जाती थी। इसमें एक दर्जन विद्यार्थी केलीग्राफी का हुनर सीखते हैं। केलीग्राफ में एक शब्द को 50 अलग-अलग तरीके से लिखा जाता है। कागज, कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी, कांच, दाल, चावल, बोतल में बेहतरीन केलीग्राफी की जाती है।
कैलीग्राफी का फन यूं तो टोंक में सालों से है, लेकिन नई पीढ़ी को अब उर्दू, अरबी व फारसी के साथ संस्कृत में भी कैलीग्राफी को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। टोंक की कैलीग्राफी देशभर में मशहूर है।
– डॉ. सौलत अली खां, निदेशक मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक