उस समय का दृश्य याद कर आज भी मन रोमांचित हो उठता है। वहीं स्वतंत्रता के बाद आयोजित होने वाले दोनों राष्ट्रीय पर्वों की धूम देखते ही बनती थी। स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस की तैयारियां कई दिनों पूर्व शुरू हो जाती थी। वहीं इन आयोजन को लेकर लोग त्योहारों से ज्यादा उत्सुक रहते थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के शुरुआती दशकों में तो इन मौके पर घरों में पकवान बनाकर खुशी मनाई जाती थी, लेकिन अब समय की रफ्तार के साथ अब इन पर्वों में औपचारिकता की झलक दिखाई देती है। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के बाद सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर राष्ट्रीय पर्व मनाते थे।
आवां. क्षेत्र के बुजुर्गों को 26 जनवरी 1955 का दिन आज भी याद है जब पहली बार कस्बे के विद्यालय में तिरंगा लहराया। गांव के 92 वर्षीय राम किशन जांगिड़ बताते है कि अब उच्च माध्यमिक हो चुके गांव के विद्यालय परिसर में पहली बार तिरंगे को लहराते देखा था। गांव में जश्न का माहौल था। कार्यक्रम को देखने आस-पास के गांवों के महिला-पुरुष भी आए थे।
सभी घरों में व्यंजन बनाए गए थे। राष्ट्रगान की धुन के साथ सीना गर्व से फूल जाता था। उस समय आज के की तरह संगीत के उपकरण नहीं थे, लेकिन कार्यक्रम भावना एवं जज्बात से जुड़े होते थे। फिल्मी दौर नहीं होने के कारण देशभक्ति की भावना को ही अधिक महत्व दिया जाता था। इससे पहले क्षेत्र के लोग 15 अगस्त और 26 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जोश व उमंग के साथ
कोटा एवं
जयपुर जाते थे।