महोत्सव के अन्तिम दिन प्रतिष्ठाचार्य महावीर प्रसाद गीगंला, सह-प्रतिष्ठाचार्य पं. मनोज, प्रो. टीकमचन्द जैन ने जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक, शांतिधारा, नित्यमह पूजन की क्रियाएं सम्पादित करवाई। इसके बाद
योग निरोध पूर्वक भगवान का मोक्षगमन, अग्नि संस्कार मोक्षकल्याणक पूजन, निर्वाण लड्डू चढाने की क्रियाओं के बाद आचार्य इन्द्रनन्दी ने पाषाण से परमात्मा बनने की प्रक्रिया के बारे में बताया।
समापन पर विश्वशांति महानुष्ठान के बाद समारोह स्थल से अग्रवाल सेवा सदन तक रथयात्रा निकाली गई, जिसमें श्रीजी कोनवीन जिनालय ले जाया गया। जहां श्रद्धालुओं द्वारा श्रीजी को वेदियों में विराजित किया गया। समापन पर अग्रवाल समाज चौरासी अध्यक्ष हुकमचन्द जैन ने भामाशाहों व कार्यकर्ताओं का सम्मान किया।
समारोह में महामंत्री त्रिलोकचंद जैन, मंत्री अनिल सूराशाही, युवा परिषद् अध्यक्ष विनोद नेवटा, महामंत्री मनीष, कोषाध्यक्ष गोविन्द जैन, राकेश नेवटा, प्रकाश जैन, हुकमचन्द जैन, रामपाल जैन, पूर्व प्रधान सुकुमार जैन, पवन कागला, महावीर प्रसाद जैन, भागचन्द जैन सहित कई श्रद्धालु उपस्थित थे।
मनुष्य में संस्कार निर्माण जरूरी देवली. शहर की ज्योति कॉलोनी स्थित आदिनाथ दिगम्बर जैन अग्रवाल मन्दिर में सोमवार को त्रय शिखर शुद्धि, स्वर्ण कलश व ध्वज दंड प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित हुआ। इस मौके पर कई धार्मिक कार्यक्रम हुए। यहां प्रवचन करते हुए मुनि सुकुमालनंदी ने कहा कि लोगों को मन्दिर स्थापना के साथ संस्कार निर्माण पर भी
ध्यान देना चाहिए।
चरित्र व संस्कार निर्माण मनुष्य में जरूरी है। इसी से ही समाज सुशिक्षित व सम्पन्न बनेगा। मिट्टी से घड़ा बनने के लिए मिट्टी को अनेक यातनाएं सहनी पड़ती है। मनुष्य को ऊपर उठने के लिए सदैव नींव की ईंट बनना होगा। हमें अनेक प्रकार के संकटों का सामना करते हुए संस्कारों को धारण करना चाहिए। जब तक कष्टों का सामना नहीं करेंगे, मनुष्य महापुरुष नहीं बन सकता।
धर्म, अनुष्ठान व सत् कार्यों से मनुष्य को कंकर से शंकर, पतित से पावन, शव से
शिव , आत्मा से परमात्मा, पाषाण से परमेश्वर व इंसान से भगवान बनने की शिक्षा मिलती है। इस दौरान मन्दिर में त्रय शिखर शुद्धि, स्वर्ण कलश व ध्वज दंड प्रतिष्ठा की गई। महिलाओं ने कलश लेकर शोभायात्रा निकाली। इसमें मुनि सुकुमालनंदी की अगुवाई में लोग में चल रहे थे।
शोभायात्रा का कई स्थानों पर लोगों ने स्वागत किया। तीनों शिखरों पर स्वर्ण कलश व ध्वजदंड की स्थापना की। वहीं 84 छोटे स्वर्ण कलश की भी स्थापना की गई। इस दौरान नेमीचंद जैन, धर्मराज जैन आदि उपस्थित थे।