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हथकरघा उद्योग ने दिलाई जिले को राज्य स्तर पर पहचान

locationटोंकPublished: Aug 08, 2020 07:44:49 am

Submitted by:

pawan sharma

4 वर्ष पूर्व स्थापित आचार्य विद्यासागर हथकरघा प्रशिक्षण एवं उत्पादन केंद्र भारत की परंपरागत वस्त्र निर्माण कला हथकरघा को पुनर्जीवित कर रहा है। यहां निर्मित आकर्षक सूती वस्त्रों की मांग राज्य के साथ देश में भी है।
 

हथकरघा उद्योग ने दिलाई जिले को राज्य स्तर पर पहचान

हथकरघा उद्योग ने दिलाई जिले को राज्य स्तर पर पहचान

टोंक. ग्रामीण क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक उन्नति एवं स्वावलंबन के प्रकल्प के रूप में टोंक जिले के ग्राम आवां में राहुल कुमार जैन द्वारा 4 वर्ष पूर्व स्थापित आचार्य विद्यासागर हथकरघा प्रशिक्षण एवं उत्पादन केंद्र भारत की परंपरागत वस्त्र निर्माण कला हथकरघा को पुनर्जीवित कर रहा है। यहां निर्मित आकर्षक सूती वस्त्रों की मांग राज्य के साथ देश में भी है।
राहुल ने बीसीए की पढ़ाई करने के बाद निजी क्षेत्र की नौकरी का त्याग करके जैनाचार्य संत विद्यासागर की प्रेरणा से हथकरघा की स्थापना का निर्णय किया। राहुल ने बड़े भाई आशीष जैन शास्त्री की सलाह पर मध्यप्रदेश में जाकर 6 माह का हथकरघा प्रशिक्षण लिया तथा पुन: अपने गांव लौटकर यह उद्योग चालू किया। इस प्रकल्प के माध्यम से अब तक लगभग 35 स्थानीय व्यक्तियों को हथकरघा का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार दिया रहा है।
रोजगार के साथ कौशल विकास का लक्ष्य
ग्रामीण क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लक्ष्य एवं स्वावलंबन के प्रकल्प के रूप में राहुल जैन ने 20 वर्ष की आयु में मात्र 3 लोगों एवं 5 हथकरघा मशीनों से इस उद्योग की शुरुआत की। आज बिना किसी सरकारी सहायता के 15 हथकरघा मशीनों, 10 कताई के चरखों, 1 ताना मशीन एवं धुलाई-प्रेस की मशीन के साथ इस उद्योग का विस्तार किया है। 3 मशीनों के माध्यम से नए बुनकर को प्रशिक्षण दिया जाता है।
15 परिवारों को मिला रोजगार
यह उद्योग इस क्षेत्र ही नहीं टोंक जिले में हथकरघा से वस्त्र निर्माण का प्रथम उद्योग है। आज लगभग 15 स्थानीय परिवारों को इस प्रकल्प से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है जिससे उनकी सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति हुई है तथा उनमे नए कौशल का भी विकास हुआ है।
पुरस्कार भी मिले
इस उद्योग द्वारा हथकरघा क्षेत्र में राहुल के अनूठे कार्य एवं हथकरघा कला के पुनरुद्धार में भागीदारी के लिए वर्ष 2019-20 का राज्य व जिला स्तरीय बुनकर पुरस्कार भी इस केंद्र को प्राप्त हुआ है। वहीं नवाचार, स्वावलंबन के इस प्रकल्प एवं विलुप्त होती वस्त्र निर्माण की हथकरघा कला के पुनर्जीवन में भागीदारी को सराहा गया है। इस हथकरघा उद्योग के द्वारा अब तक 10 स्थानीय महिलाओं को वस्त्र बुनाई एवं कताई का प्रशिक्षण दिया गया है, जो अब सम्मानपूर्ण आजीविका प्राप्त कर रही है।
सरकार से अपेक्षित सहयोग
वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार एवं उद्योग विभाग सामंजस्य बैठाकर हथकरघा उन्मुख योजनाओं की घोषणा एवं उनके जमीनी क्रियान्वयन की ओर ध्यान दे तो समाप्त होती इस हथकरघा संस्कृति के पुनर्जीवन के हमारे प्रयास को संबल मिलेगा। हथकरघा बुनकरों को इस उद्योग की स्थापना, मशीनों एवं धागों की खरीदी के लिए आसान ऋ ण की उपलब्धता, सस्ती दरों पर आसानी से धागे की उपलब्धता, तैयार माल की खरीदी के लिए सही नीति एवं विक्रय के लिए उचित स्थान की उपलब्धता में सहयोग इत्यादि उपाय इस हथकरघा को पुनर्जीवित करने में सहयोगी होंगे।

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